कुम्भ मेले को लेकर संतो की जिद्द के आगे पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत का इस्तीफा आज भाजपा के लिए उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में भारी पड़ता नज़र आ रहा है पढ़े कैसे :-

Slider उत्तराखंड राजनीति

उत्तराखंड के महासंग्राम 2022 के चुनाव में जिस तरह से भाजपा में एक-एक करके भाजपा के मंत्रियों से लेकर के विधायक जो भाजपा के प्रत्याशी भी हैं वह भितरघात होने का अंदेशा जता रहे हैं , जिसके चलते भाजपा के माथे पर सत्ता खोने का डर सताने लगा है। आपको बता दें अब राजनीति के जानकारों की माने तो भाजपा के अंदर कानाफूसी होने लगी है 2021 में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को सत्ता से हटाना उत्तराखंड के 2022 के चुनाव में आज भाजपा पर भारी पड़ता जा रहा है। वर्तमान के हालात को देखकर केंद्रीय नेतृत्व भी आज उस बड़ी भूल को कहीं ना कहीं स्वीकार कर रहा है, उत्तराखंड की सत्ता से भाजपा का यदि सूपड़ा साफ होता है तो उसका मुख्य कारण प्रदेश में भाजपा सरकार के अंतिम वर्ष में 3 मुख्यमंत्रियों का बनना एक अच्छा संकेत जनता के सामने नहीं गया, जिसके कारण पिछले चार वर्षों में भाजपा सरकार के द्वारा किए गए कार्यों को उत्तराखंड के 2022 के चुनाव में भाजपा ठीक से भुना नहीं पाई और भाजपा सरकार के अंतिम वर्ष 2021 मुख्यमंत्री बदलने में ही लगा दिया।
2017 में जब भाजपा की त्रिवेंद्र सरकार 57 विधायकों की पूर्ण बहुमत की सरकार आई थी तो उसका नाम डबल इंजन की सरकार दिया गया था,जिसमे पहला इंजन देश के प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरा इंजन त्रिवेंद्र रावत को कहा गया था परन्तु इसका जिक्र उत्तराखंड के 2022 के चुनाव में भाजपा के प्रचार प्रसार में कहीं नहीं नज़र आया जिसका खामियाजा अब भाजपा के प्रत्याशी अंदर खाने भितरघात होने की शिकायत खुले मंच पर करने लगे हैं, यदि भाजपा डबल इंजन सरकार के कार्यों को लेकर चुनाव में उतरती तो कहीं ना कहीं चुनाव में भाजपा के पास जनता के सामने कई प्रदेश के विकास कार्य गिनाने के लिए होते परंतु अब माना जा रहा है,कि भाजपा की ऐसी क्या मजबूरी थी की चार साल की सरकार के आखरी वर्ष में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाना पड़ा। वही राजनीति के जानकारों की माने तो 2021 में होने हुए महाकुंभ पर त्रिवेंद्र रावत ने कोरोना संक्रमण के चलते शक्ति से प्रतिबंध लगाया हुआ था जिसके चलते माहकुम्भ मेले को करने को लेकर अखाड़ों के मठाधीशों व संतो की एक न सुनी जिसको लेकर कही न कही अखाड़ा परिषद पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से इतना नाराज हो गए थे की अखाड़ा परिषद के महामंडलेश्वर से लेकर संतो ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से लेकर के प्रधानमंत्री मोदी को अपनी नाराजगी जताते हुए त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाने की पूरी कोशिश करी जिसमें वह सफल भी रहे । परंतु आज भाजपा के प्रत्याशियों द्वारा खुलेआम भाजपा के अंदर चुनाव में भीतरघात होने के लगातार बयान से पता चलता है कि कहीं ना कहीं भाजपा अंदर ही अंदर तीन मुख्यमंत्री देने के बाद भाजपा कई गुटों में बंट गई है, जिसके चलते आज उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में मतदान होने के बाद प्रत्याशी खुले आम चुनाव नतीजे आने से पहले ही अपने हाथ खड़े करने लगे है। जिसके चलते विपक्षी दल कांग्रेस के झंडे ऊंचे दिखाई देने लगे है ,भाजपा के कई प्रत्याशियों ने पहले ही भीतरघात होने के कारण हारने के संकेत दे दिए हैं, जिसके चलते कांग्रेस सरकार बनाने को लेकर अति उत्साहित दिखाई दे रही है। वही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की बीते रविवार को पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ मुलाकात ने भले ही राजनीति का माहौल चर्चाओं से गर्म कर दिया हो पर दिल्ली से लौटे मुख्यमंत्री धामी का अचानक पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के घर पहुंचना कहीं ना कहीं एक बड़ा यह संकेत देता है, कि चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के 4 साल के कार्यों को ज्यादा तजबो नहीं दी गई, जिसके चलते अब भाजपा को धीरे-धीरे समझ में आ रहा है कि अंतिम वर्ष में तीन मुख्यमंत्री बनना एक बड़ी भूल रही और जिसके चलते अब पार्टी के अंदर बहुत ज्यादा भितरघात हो गया है। जिस कारण मतदान होते ही भाजपा प्रत्याशियों ने अभी से अपने हाथ खड़े कर दिए हैं।

रिपोर्ट : पवन नेगी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *