25 साल का इंतजार खत्म: खुशबू कुमारी ने दिलाया बिहार को नेशनल गेम्स में स्वर्ण पदक!

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खुशबू कुमारी की कहानी सिर्फ एक पदक जीतने की गाथा नहीं, बल्कि अथक संघर्ष, अडिग संकल्प और अनकहे दर्द से बुनी हुई वह प्रेरक यात्रा है, जिसने एक साधारण किसान परिवार की बेटी को राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण पदक तक पहुँचा दिया। कराटे में प्रशिक्षित खुशबू ने जब लॉन बॉल की दुनिया में कदम रखा, तब चुनौतियों के साथ उम्मीद की एक किरण भी झिलमिलाई।

खुशबू का बचपन अभावों में बीता। उनके पिता, एक छोटे किसान, खेतों में दिन-रात मेहनत कर परिवार का भरण-पोषण करते थे। सीमित संसाधनों के बावजूद, माता-पिता ने कभी उसकी उड़ान को रोकने की कोशिश नहीं की, बल्कि हर कदम पर हौसला बढ़ाया।

2016 में झारखंड में पहली बार अभ्यास शुरू करने वाली खुशबू ने जल्द ही अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। दिल्ली में आयोजित टूर्नामेंट में कांस्य पदक जीतने के बाद उनके भीतर और आगे बढ़ने का जुनून जाग उठा। लेकिन यह सफर आसान नहीं था। खेलने के लिए सही जगह तक नहीं मिलती थी। कई बार, जब मैदान उपलब्ध नहीं होता, तो उन्होंने शादी के कारपेट पर ही दो बॉल के सेट के साथ अभ्यास किया। उस कारपेट पर उनके पैरों की हर थाप में उनके सपनों की धड़कन बसती थी, और हर धूल भरे मोड़ पर उम्मीद का दीप जलता रहा। राष्ट्रीय खेलों के फाइनल में, जब खुशबू की टीम का मुकाबला पश्चिम बंगाल से था, तो हर क्षण रोमांच से भरा था। कड़ी टक्कर के बाद, आखिरकार वह ऐतिहासिक क्षण आया जब खुशबू ने स्वर्ण पदक जीतकर अपने संघर्ष का सुनहरा फल पाया।

इस ऐतिहासिक जीत पर महानिदेशक सह मुख्य कार्यकारी अधिकारी,( बिहार राज्य खेल प्राधिकरण ) रविंद्र शंकरन ने भावुक स्वर में कहा,
“2000 में बिहार और झारखंड के बंटवारे के बाद से 2025 तक, बिहार ने राष्ट्रीय खेलों में एक भी स्वर्ण पदक नहीं जीता था। लेकिन आज, खुशबू कुमारी और उनकी टीम ने वीमेन ट्रिपल्स में स्वर्ण जीतकर वह अधूरी प्यास बुझा दी है।”

खुशबू कुमारी की यह जीत सिर्फ एक पदक की नहीं, बल्कि उन सभी युवा खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा है, जो सीमित संसाधनों, अनगिनत मुश्किलों और संघर्षों के बावजूद अपने सपनों को साकार करने का जज़्बा रखते हैं। आज, खुशबू की कहानी यह साबित करती है कि यदि हौसले बुलंद हों, तो कठिनाइयाँ केवल मंज़िल तक पहुँचने की सीढ़ियाँ बन जाती हैं। उनकी यह उपलब्धि उन अनगिनत सपनों को रोशनी देने का संदेश है, जो अंधेरे में उम्मीद की एक किरण के लिए तरसते हैं।


संवाददाता

अदिति कंडवाल

अदिति कंडवाल दून विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य में एमए की छात्रा हैं। उन्हें साहित्य और पत्रकारिता में गहरी रुचि है, जिसके चलते वह लेखन और संवाद के माध्यम से समाज में नई सोच और विचारों का संचार करने का प्रयास करती हैं।

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