संघर्ष, त्याग और समर्पण की कहानी: निशानेबाज अभिनव देशवाल और उनके पिता का अनूठा सफर

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एक खिलाड़ी की सफलता के पीछे संघर्ष, त्याग, और दृढ़ संकल्प की कहानी होती है। 2022 के Deaflympics के स्वर्ण पदक विजेता अभिनव देशवाल की यह कहानी उनके परिवार के अटूट समर्थन और संघर्ष की मिसाल है।

इस बार 38वें नेशनल गेम्स में, अभिनव ने मिश्रित वर्ग में कांस्य पदक की प्रतिस्पर्धा के लिए जगह बनाई। हालांकि इस बार वह पदक हासिल करने में विफल रहे, लेकिन उनके पिता, मनोज देशवाल का कहना है, “हार-जीत लगी रहती है, हम अभिनव को आगे ले जाने में लगातार प्रयासरत हैं।”

अभिनव के पिता याद करते हैं कि कैसे Deaflympics में स्वर्ण पदक जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खिलाड़ियों से मुलाकात की थी। इस मुलाकात ने अभिनव को नई ऊर्जा और प्रेरणा दी। उनके पिता गर्व से कहते हैं, “मोदी जी के साथ वह पल अभिनव के जीवन का महत्वपूर्ण क्षण था।”

कहते हैं कि वह पिता है जो:-

छांव में बिठाकर, खुद जलता रहा धुप में।

पैरों में कांटे कभी न चुभे, मगर उसके तलवों में छाले मिले।

मनोज देशवाल ने भी अपने बेटे के सपनों को पूरा करने के लिए नौकरी छोड़ दी, ताकि वह अभिनव के प्रशिक्षण और प्रतियोगिताओं के दौरान उसे हर कदम पर समर्थन दे सकें। उनकी मां भी हमेशा शिविरों में उनके साथ रहती हैं, जबकि बहन, जो खुद एक शूटर हैं, उसे प्रेरित करती रहती हैं।

शुरुआत में आर्थिक तंगी से गुजरते हुए, मनोज ने अपने घर को बेचकर अभिनव की ट्रेनिंग का खर्च उठाया। उन्होंने पहली बार Jagriti Media के माध्यम से यह बात साझा की।

अभिनव ने मात्र 15 साल की उम्र में 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में Deaflympics में स्वर्ण पदक जीतकर अपनी प्रतिभा साबित की। उनके पिता ने उत्तराखंड में 38वें राष्ट्रीय खेलों के लिए विकसित विश्वस्तरीय सुविधाओं की सराहना की, जिससे अब अभिनव अपने राज्य में ही प्रशिक्षण ले सकते हैं।

उन्होंने कहा, “यह अविश्वसनीय है कि उत्तराखंड में अब विश्व स्तरीय शूटिंग रेंज है। यह न केवल अभिनव बल्कि अन्य बच्चों के लिए भी बहुत लाभदायक साबित होगी।” रूड़की के रहने वाले मनोज जी बताते हैं कि अब अभिनव की ट्रेनिंग आसान हो जाएगी चूंकि उन्हें अब ट्रेनिंग के लिए ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ेगा। वह सोच रहें हैं कि आसानी से रोज़ रूड़की से देहरादून आना-जाना करेंगे।

निशानेबाजी एक महंगा खेल है, और अभिनव की ट्रेनिंग पर हर महीने ₹1 से ₹1.5 लाख तक का खर्च आता है। उनके पास अभी तक कोई प्रायोजक नहीं है, लेकिन मनोज जी आशावान हैं कि वह अपने बेटे को आगे बढ़ाते रहेंगे, चाहे जो भी कठिनाई आए।

सफ़र में मुश्किलें आएं, तो जुर्रत और बढ़ती है। कोई जब रास्ता रोके, तो हिम्मत और बढ़ती है।

अभिनव देशवाल और उनके परिवार की यह कहानी संघर्ष, समर्पण और सफलता की अनूठी मिसाल है, जो हर किसी को प्रेरित करती है।

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संवाददाता 

अनुभा रावत 

अनुभा रावत, Sri Venkateswara College (DU) की जीवविज्ञान (Zoology) की छात्रा हैं और उन्हें वन्यजीवन और जीवविज्ञान संबंधी शोध में गहरी रुचि है। एक पूर्व पेशेवर बैडमिंटन खिलाड़ी होने के नाते, खेल उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है। अपने दोनों जुनून को मिलाते हुए, वह वर्तमान में जीवविज्ञान शोध, खेल विज्ञान और खेल पत्रकारिता से संबंधित विषयों पर लेखन कर रही हैं।

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