देहरादून:
उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकॉस्ट) द्वारा आयोजित 19वें उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सम्मेलन 2024 का दूसरा दिन विचारोत्तेजक सत्रों और प्रभावशाली चर्चाओं के साथ जारी रहा। दून विश्वविद्यालय के डॉ. नित्यानंद ऑडिटोरियम में आयोजित यह तीन दिवसीय आयोजन “जल और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन” थीम पर आधारित है और इसे सिलक्यारा विजय अभियान की पहली वर्षगांठ के उपलक्ष्य में समर्पित किया गया है। यह ऐतिहासिक अभियान हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने का प्रतीक है।
दूसरे दिन का मुख्य आकर्षण रहा “भावनात्मक सहनशीलता का निर्माण – भावनात्मक अनुकूलता का विज्ञान और कला”, एक विशेष सत्र जो प्रतिभागियों को भावनात्मक संतुलन, अनुकूलता और मानसिक दृढ़ता बढ़ाने के उपकरण प्रदान करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया।
सत्र की शुरुआत दूसरे डॉ. जय द्वारा हुई, जिसमें उन्होंने व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास में भावनात्मक अनुकूलता के महत्व पर प्रकाश डाला।
प्रख्यात वैज्ञानिक प्रो. सी.एन.आर. राव और उनकी पत्नी श्रीमती इंदुमति राव ने वर्चुअली माध्यम से इस सम्मेलन को संबोधित किया। प्रो. राव ने आयोजनकर्ताओं और प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया, जबकि श्रीमती राव ने गंगोलीहाट परियोजना पर प्रकाश डाला, जो पर्यावरण और समाज कल्याण को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
सीजन 3 के मुख्य बिंदु
राधिका जैन (उड़ान सोसायटी, नई दिल्ली) ने सत्र की शुरुआत गहरी सांस लेने के अभ्यास से की, जिससे प्रतिभागियों को शांति और ध्यान केंद्रित करने में मदद मिली। उन्होंने कहा कि “भावना ऊर्जा की गति है” और प्रतिभागियों को अपनी भावनात्मक ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में उपयोग करने का मार्गदर्शन दिया। उनकी व्यावहारिक तकनीकों ने वातावरण को सहज और विचारशील बना दिया।
डॉ. पंत ने मन और शरीर के संबंध पर जोर दिया और बताया कि भावनात्मक असंतुलन कैसे शारीरिक लक्षणों के रूप में प्रकट होता है। उन्होंने प्रतिभागियों को भावनाओं को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने की रणनीतियाँ दीं, विशेष रूप से ADHD जैसे मामलों या सिलक्यारा अभियान जैसी चुनौतियों के दौरान। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भावनात्मक सहनशीलता जीवन की चुनौतियों का सामना करने और विपरीत परिस्थितियों में घबराहट से बचने का एक महत्वपूर्ण साधन है।
राधा भट्ट ने प्रतिभागियों को शारीरिक वार्म-अप अभ्यास कराए और पैरासिम्पेथेटिक और सिम्पेथेटिक तंत्रिका तंत्र की भूमिका समझाई, जो शरीर को शांत रहने और तनावपूर्ण परिस्थितियों में प्रतिक्रिया करने में मदद करता है। उन्होंने दबी हुई भावनाओं को हल करने, संतुलित आहार अपनाने और आराम को प्राथमिकता देने के टिप्स साझा किए। उनके सुझाव प्रतिभागियों के लिए बेहद उपयोगी साबित हुए।
राधिका जैन की इमोशनल फ्रीडम टेक्निक्स (EFT)
सत्र के समापन पर, राधिका जैन ने इमोशनल फ्रीडम टेक्निक्स (EFT) का प्रदर्शन किया, जिसमें विशिष्ट मेरिडियन बिंदुओं पर टैपिंग शामिल है। उन्होंने समझाया कि यह तकनीक भावनात्मक अवरोधों को दूर करने, तनाव को कम करने और भावनात्मक सहनशीलता बढ़ाने में कैसे मदद करती है। उन्होंने नौ प्रमुख टैपिंग बिंदुओं और उनके लाभों के बारे में जानकारी दी।
सत्र का समापन राधा भट्ट द्वारा “रीसेट, रीजुवेनेट और रिचार्ज” शीर्षक से एक गहन ध्यान सत्र के साथ हुआ। इस ध्यान ने प्रतिभागियों को तरोताजा और आत्मविश्वास से भरा महसूस कराया।
सम्मेलन के दूसरे दिन ने आधुनिक चुनौतियों से निपटने में भावनात्मक सहनशीलता की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया। इसने प्रतिभागियों को तनाव प्रबंधन, भावनात्मक संतुलन और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के व्यावहारिक उपकरण और वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान किए।
जैसे-जैसे सम्मेलन अपने अंतिम दिन की ओर बढ़ रहा है, और भी विचारोत्तेजक सत्रों की अपेक्षा की जा रही है, जो सतत विकास और समग्र कल्याण के सामूहिक दृष्टिकोण को साकार करेंगे।19वें उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सम्मेलन 2024: सत्र 4 – “भारतीय ज्ञान परम्परा: संस्कृत एवं विज्ञान”
देहरादून, 29 नवंबर 2024: उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकॉस्ट) द्वारा आयोजित 19वें उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सम्मेलन के चौथे सत्र का आयोजन “भारतीय ज्ञान परम्परा: संस्कृत एवं विज्ञान” विषय पर हुआ। इस सत्र का शुभारंभ हरिद्वार के संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा मंत्रोच्चार के साथ किया गया। सत्र में यह संदेश दिया गया कि संस्कृत केवल कर्मकांड की भाषा नहीं है, बल्कि यह ज्ञान और विज्ञान की भाषा भी है।
सत्र का उद्घाटन संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रो. गुरु राणे ने किया। उन्होंने मंच पर सभी अतिथियों का स्वागत किया और बताया कि भारतीय संस्कृति और संस्कृत के माध्यम से भारत ने हमेशा विश्व को ज्ञान का प्रकाश दिया है।
संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार के आचार्य शुभ्रमणियम ने अपने संबोधन में कहा, “भारत विश्वगुरु था, है और रहेगा। संस्कृत दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा है। वेद स्वयं में सत्य हैं, उन्हें खोजना नहीं, बल्कि उनके माध्यम से सत्य को समझना आवश्यक है। वेद आकाश के समान अनंत और असीमित हैं।”
सत्र के मुख्य वक्ता: आचार्य प्रो. पी.बी. सुब्रह्मण्यम, डॉ. वैशाली गुप्ता, आचार्य प्रो. सिद्ध्युमन और यूकॉस्ट डीजी दुर्गेश पन्त रहे।
सत्र का समन्वयन दून विश्वविद्यालय, देहरादून के डॉ. सुधांशु जोशी ने किया। यूकॉस्ट के श्री अरुण कुमार त्यागी, श्री विनोद ओझा और श्री अभय कुमार सक्सेना ने सत्र में सक्रिय भूमिका निभाई।
इस सत्र में यह बताया गया कि संस्कृत विश्व की प्राचीनतम भाषा है, जिसमें भारतीय संस्कृति और ज्ञान-विज्ञान की अविरल धारा प्रवाहित होती रही है। वेद, दर्शन, धर्मशास्त्र जैसे ग्रंथों में वैज्ञानिक विषयों पर गहन विवेचन मिलता है। संस्कृत वाङ्मय में गणित, खगोल विज्ञान, रसायन शास्त्र, भौतिक शास्त्र, आयुर्विज्ञान, कृषिविज्ञान, पर्यावरण और सैन्य विज्ञान जैसे विषयों का गहरा ज्ञान निहित है।
संस्कृति भाषा का वैज्ञानिक दृष्टिकोण साझा करते हुए सत्र में कहा गया की प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में निहित ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के सिद्धांतों में गहरा सामंजस्य है। इस सत्र में यह चर्चा की गई कि आधुनिक वैज्ञानिक नियमों का समन्वय प्राचीन ग्रंथों में वर्णित विज्ञान से कैसे किया जा सकता है, जिससे समाज के कल्याण के लिए उपयोगी सिद्धांत और तकनीक विकसित की जा सकें।
संस्कृत के महत्व को रेखांकित करते हुए सत्र में बताया गया कि संस्कृत भाषा में सभी विद्याओं और कलाओं का भंडार है। यह न केवल भौतिक समृद्धि का मार्ग दिखाती है, बल्कि चिरकालीन आध्यात्मिक सुख का भी मार्ग प्रशस्त करती है।
इस सत्र ने प्रतिभागियों को प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक ज्ञान और उसकी प्रासंगिकता से अवगत कराया। सत्र 4 में संस्कृत और विज्ञान के अद्वितीय संबंध को दर्शाया और भारतीय ज्ञान परंपरा की महानता को पुनः स्थापित किया।