चारधाम: मोक्ष की यात्रा या नया सोशल मीडिया ट्रेंड?

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माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।”- कबीर दास

चारधाम यात्रा-बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री -भारत के आध्यात्मिक मानचित्र का केंद्र हैं। यह यात्रा केवल भौतिक नहीं, आत्मिक यात्रा है। यह एक साधक का जीवन की समस्त जिम्मेदारियों से मुक्ति पाने के बाद ईश्वर की ओर लौटने का प्रयास है।

इतिहास में झांकें तो, प्राचीन काल में चारधाम यात्रा केवल वृद्धों के लिए मानी जाती थी। जब जीवन का उत्तरार्ध प्रारंभ होता, जब सांसारिक मोह कम होता, तब व्यक्ति मोक्ष की चाह में हिमालय की ओर रुख करता। यात्राएँ कठिन थीं -पहाड़, जंगल, बर्फ और सीमित संसाधन। लोग पैदल जाते थे, महीनों लगते थे, और यह मानकर चलते थे कि शायद वापसी न हो।

जैसा कि शंकराचार्य जी ने कहा था:”मोहं मार्तण्डमण्डलमजितं भाति तत्सत्तया । दु:खानां नाशनं विधाय सदा सन्मुखं वर्तते।।”  शिवानंद लहरी

अर्थात, मोह (आसक्ति) का नाश कर, जब आत्मा सत्य के प्रकाश में प्रवेश करती है, तभी दुखों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। शंकराचार्य जी ने केदारनाथ में मठ की स्थापना इसी उद्देश्य से की थी कि योग, ज्ञान और भक्ति का संगम तीर्थ यात्रा के माध्यम से साधक को मिले।

आज के दौर में विरोधाभास

आज के डिजिटल युग में, जहां हर यात्रा एक “कंटेंट” बन गई है, चारधाम जैसी पवित्र यात्रा भी इसकी चपेट में आ गई है। हेलिकॉप्टर, SUV, Insta Reels -यात्रा अब मोक्ष के लिए नहीं, “व्यूज़” के लिए हो रही है। छोटे-छोटे बच्चों को बर्फ, बारिश, ऊँचाई के बावजूद चारधाम ले जाया जा रहा है। ज़रा सी ठंड में जिन्हें ज़ुकाम हो जाता है, उन्हें 11,000 फीट की ऊँचाई पर लेकर जाना क्या श्रद्धा है या दिखावा?

“जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि।” लेकिन आज तो कवि नहीं, कैमरा पहुँच रहा है।

तीर्थ का उद्देश्य – मोक्ष, मार्केट नहीं।

तीर्थयात्रा कभी पर्यटन नहीं थी। वह एक तप थी जैसे अरण्यकांड में राम वनवास में गए, वैसे ही तीर्थ यात्री अपने भीतर के रावण का नाश करने तीर्थ पर जाता था। पर अब?

बुज़ुर्ग जो चुपचाप, भीतर से टूटे हुए, एक छोटी सी आस्था की लौ जलाकर चारधाम जाना चाहते हैं, उन्हें टिकट नहीं मिलता, भीड़ में धक्का मिलता है। दूसरी ओर, युवा और तथाकथित इंफ्लुएंसर—खुशियों के नाम पर अपनी-अपनी लाइक्स और शेयर की माला फेरते हुए सेल्फ़ी लेते नजर आते हैं।

चारधाम की यात्रा एक “पिकनिक” नहीं है। यह शरीर और आत्मा दोनों की परीक्षा है। यह ईश्वर के प्रति समर्पण की यात्रा है, न कि डिजिटल स्टेटस की।

हमें फिर से यह समझना होगा कि तीर्थ का उद्देश्य मोक्ष था- “मोक्षार्थं जगद्धिताय” – न कि मस्ती, न ही वायरल होने की होड़।

तो चलिए, फिर से अपने भीतर के तीर्थ को खोजें, अपने इरादों को शुद्ध करें, और चलें एक ऐसी यात्रा पर जो हमें हमारे स्वयं से मिलवाए – क्योंकि अंततः वही सच्चा धाम है।

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