अर्थिक संकट और चोट के बावजूद जीते 3 स्वर्ण: रमा सोनकर ने 38वें राष्ट्रीय खेलों में किया धमाल, पेंटाथलॉन और कुश्ती में बनीं प्रेरणा

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24 वर्षीय रमा सोनकर ने 38वें राष्ट्रीय खेलों में 3 स्वर्ण तथा 1 रजत पदक जीतकर सभी को दंग कर दिया है। इससे पहले, उनके तीसरे राष्ट्रीय खेलों के अनुभव के दौरान (37वें राष्ट्रीय खेलों, गुजरात में) उन्होंने 4 रजत और 2 कांस्य पदक जीतकर अपना लोहा मनवाया था।

रमा बताती हैं, “मैंने 2012 से खेल की दुनिया में कदम रखा है, पर असली पहचान मुझे राष्ट्रीय खेलों से मिली।” पेंटाथलॉन और कुश्ती जैसे चुनौतिपूर्ण खेलों में हिस्सा लेकर, रमा ने ना केवल अपने कौशल का प्रदर्शन किया, बल्कि देश के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनी।

रमा का परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहा है। उनके पिता, सुनील सोनकर, जो स्वयं कभी राष्ट्रीय स्तर पर कुश्ती खिलाड़ी रह चुके थे, आज रिक्शा चालक के रूप में अपनी मेहनत चला रहे हैं। वहीं, उनकी माँ एक गृहिणी हैं। कम आय और पारिवारिक आर्थिक दिक्कतों के बावजूद रमा ने अपनी मेहनत और लगन से खेल जगत में अपना मुकाम बनाया है।

चार महीने पूर्व रमा का एक दर्दनाक हादसा हुआ था, जिसमें उन्हें गंभीर सिर की चोट लगी। इस चोट के बावजूद, रमा ने हार मानने के बजाय नई ऊर्जा के साथ अपने प्रशिक्षण को जारी रखा है। उन्होंने बताया, “मुझे डर था कि चोट का असर मेरी प्रैक्टिस पर पड़ेगा, पर मैंने ठान लिया है कि मैं इस चुनौती का सामना करूँगी।” अब रमा अगले एशियाई खेलों की तैयारी में जुटी हुई हैं।

रमा सोनकर का संघर्षपूर्ण सफर, उनकी उपलब्धियाँ और उनकी अटूट हिम्मत देशभर के युवाओं के लिए एक मिसाल है। उनकी कहानी बताती है कि चुनौतियों से लड़कर, दृढ़ निश्चय और जुनून के साथ सफलता हासिल की जा सकती है।

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संवाददाता

अदिति कंडवाल

अदिति कंडवाल दून विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य में एमए की छात्रा हैं। उन्हें साहित्य और पत्रकारिता में गहरी रुचि है, जिसके चलते वह लेखन और संवाद के माध्यम से समाज में नई सोच और विचारों का संचार करने का प्रयास करती हैं।

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