लेखकीय अभिव्यक्ति के वैभव को जिंदा रखने की आवश्यकता :डॉ. रत्तू

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श्रीगंगानगर:

मीडिया की चर्चित शख्सियत एवं मीडिया विशेषज्ञ ,दूरदर्शन के उप महानिदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए सुप्रसिद्ध साहित्यकार, मीडियाकर्मी डॉ. कृष्णकुमार रत्तू ने कहा है कि आज हिंदुस्तान का साहित्यकार बहुत डरा हुआ है, लेकिन लेखन को जिंदा रखना है तो उसे डर को निकालना पड़ेगा।

वे  राजस्थान के श्रीगंगानगर शहर में सृजन सेवा संस्थान की ओर से यहां महाराजा अग्रसेन विद्या मंदिर में आयोजित मासिक कार्यक्रम ‘लेखक से मिलिए’ की 115वीं कड़ी में संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि आज डर कर रहने का समय नहीं रहा है। अपनी शख्सियत को ऐसा बनाना चाहिए कि देखकर दूसरों का बीपी बढ़ जाए।

याद रखें, जिंदा रहने की पहली शर्त ही संघर्ष है। उन्होंने कहा कि भागमभाग और आपाधापी के इस युग में साहित्य और संस्कृति के संस्कार छोटे शहरों में ही बचे हुए हैं। वरना तो बड़े शहरों में लोग सीमेंट और कंक्रीट के जंगलों में घिर कर मशीन बनते जा रहे हैं।

पिछले 55 वर्षों से साहित्य पत्रकारिता तथा टेलीविजन मीडिया विशेषज्ञ रूप में देश की चर्चित शख्सियत डॉक्टर कृष्ण कुमार रत्तू ने कहा कि इन दोनों लेखकीय  अभिव्यक्ति का वैभव बचाए रखने की आवश्यकता है ।

डा कृष्ण कुमार रत्तू ने कहा कि लेखक की यह संवेदनाएं समाज के उस पाठक तक पहुंचनी चाहिए । यहां पर साहित्य समाज के लिए एक सिद्धांत एवं एक नई जीवन शैली के लिए जोश उत्पन्न कर सके।

डॉक्टर रत्तू ने कहा कि उनका फलसफा है कि साहित्य की उत्पत्ति लोगों के लिए होनी चाहिए  । उन्होंने अनेक  उदाहरणों से अपनी इस बात को समझाया तथा अपने जीवन के अनेकों यादगार पलों को लेखकों के साथ साझा किया ।

नई पीढ़ी की रचनाधर्मिता की बात करते हुए उन्होंने कहा कि आज सोशल मीडिया ने साहित्यिक स्पेश को खत्म कर दिया है। ऊपर से कुछ भी नहीं पढऩे की आदत हावी होती जा रही है। फिर भी सुखद यह है कि आज की युवा पीढ़ी में आधे से ज्यादा लोग अच्छा लिख रहे हैं। यह संस्कार बचा रहेगा तो यह सृष्टि बची रहेगी। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि अगर कोई व्यक्ति अच्छा नहीं है तो उसकाअच्छा साहित्यकार होने का कोई मायना नहीं रह जाता है।

कार्यक्रम मेंं अनेक लोगों ने डॉ. रत्तू से सवाल पूछे, जिनके उन्होंने बड़ी सहजता से जवाब दिए। सवाल पूछने वालों में सुरेंद्र सुंदरम, द्वारकाप्रसाद नागपाल, बनवारीलाल शर्मा, सुषमा गुप्ता, ओमाराम बैगड़, किरण बादल, गौरीशंकर बंसल एवं राकेश मितवा शामिल थे। इस मौके पर डॉ. रत्तू को सृजन साहित्य सम्मान प्रदान किया गया। उन्हें डॉ. बादल एवं राजपाल के साथ विजयकुमार गोयल, महाराजा अग्रसेन विद्या मंदिर के अध्यक्ष विनोद गुप्ता व उपाध्यक्ष अनिल टांटिया ने शॉल ओढ़ाकर, सम्मान प्रतीक एवं साहित्य भेंट करके सम्मानित किया। महाराजा अग्रसेन विद्या मंदिर समिति ने भी डॉ. रत्तू एवं भूपेंद्र राजपाल का सम्मान किया।

विशिष्ट अतिथि रोटरी क्लब ईस्ट के पूर्व अध्यक्ष भूपेंद्र राजपाल ने कहा कि शब्दों का अपना तापमान होता है। इसे सुनकर सुकून भी मिलता है और शब्द अपनी प्रतिक्रिया जता भी देता है। उन्होंने इस बात के लिए सृजन का आभार जताया कि शहर में शब्द की सत्ता को बचाए रखने के लिए निरंतर गतिविधियां जारी रखे हुए है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मंगत बादल ने कहा कि साहित्य में आगे आने के लिए अच्छा साहित्य और अपने आस पास के वातावरण को जानना बहुत जरूरी होता है। अगर हमें अपनी संस्कृति का ज्ञान नहीं है तो हम साहित्यकार कैसे बन सकते हैं।

मंच संचालन सृजन के सचिव कृष्णकुमार आशु ने किया। कार्यक्रम में सुरेश कनवाडिय़ा, अरुण खामख्वाह, राजू गोस्वामी, रमेश कुक्कड़, सतीश शर्मा, परमजीतकौर रीत, ललित चराया, विजय जोरा, अरुण उर्मेश, बनवारीलाल वर्मा, मोहन दादरवाल, डॉ. रामप्रकाश शर्मा, डॉ. पीसी आचार्य, मनोजकुमार सैन मनवा, डॉ. बबीता काजल, राकेश मोंगा, सुभाष गोगी, कृष्ण वृहस्पति, रोशनलाल धवन और सुशीला पेंसिया सहित अनेक साहित्यकार एवं साहित्य प्रेमी मौजूद थे।

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