शारीरिक आलोचनाओं को पराजित कर किमाया ने जीता स्वर्ण पदक : संघर्ष और सफलता की प्रेरक कहानी

Photo Gallery Slider sports उत्तराखंड संस्कृति

थाने, महाराष्ट्र की 17 वर्षीय किमाया अमलेश कार्ले ने अपनी कड़ी मेहनत और संघर्ष से न केवल राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण पदक जीता, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि किसी भी समस्या को खुद की मेहनत और आत्मविश्वास से पार किया जा सकता है।

किमाया ने 38वें राष्ट्रीय खेलों द्वारा आयोजित जिमनास्टिक रिदमिक फाइनल बॉल में स्वर्ण पदक जीता, और जिम्नास्टिक फाइनल हूप में रजत पदक भी जीता।

खिलाड़ी ने बातचीत में बताया कि उन्हें सबसे ज़्यादा कठिनाई अपनी शारीरिक संरचना के कारण हुई, जो शुरुआत में लचीलापन और फिटनेस के मामले में जिमनास्टिक के लिए अनुकूल नहीं था।

किमाया का जीवन बचपन से ही आलोचनाओं से भरा रहा है। उनका वजन और शारीरिक संरचना हमेशा उन्हें निशाना बनाए रखते थे। लोग उन्हें कहते थे कि वह कभी जिमनास्टिक्स जैसी कठिन स्पर्धा में सफलता प्राप्त नहीं कर सकतीं, क्योंकि उनका शरीर कठोर था और लचीलापन नहीं था। आलोचनाओं का सामना करना किमाया के लिए एक मानसिक चुनौती बन गया था, लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी।किमाया ने अपनी कोच पूजा से मिली मदद से, अपनी शारीरिक और मानसिक स्थिति को सुदृढ़ किया और खुद को जिमनास्टिक के अनुकूल ढालने के लिए दिन-रात मेहनत की।

किमाया की कोच पूजा बताती हैं, “शुरुआत में किमाया का शरीर बिल्कुल भी लचीला नहीं था, और उसे 180 डिग्री की स्प्लिटिंग भी करना बहुत मुश्किल होता था। लेकिन उसने अपनी मेहनत और दृढ़ नायकता से अपने शरीर को लचीला बना लिया और इस संघर्ष के बाद आज वह स्वर्ण पदक विजेता हैं।”

जिमनास्टिक के लिए पतली पेशियों की आवश्यकता होती है, और किमाया का शरीर शुरुआत में इसके लिए तैयार नहीं था। लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत के बल पर खुद को इस खेल के लिए पूरी तरह से ढाला। अब वह जिमनास्टिक की कठिन स्पर्धाओं को बखूबी करती हैं और स्वर्ण पदक हासिल करने वाली खिलाड़ी के रूप में उभरी हैं।
किमाया की कोच यह भी बताती हैं, “हमने किमाया को शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से मजबूत किया। मानसिक स्वास्थ्य खेल में सफलता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, और किमाया ने शारीरिक आलोचनाओं को झेलते हुए खुद को मानसिक रूप से भी ताकतवर बनाया।”

किमाया की यह कहानी न केवल हर युवा खिलाड़ी के लिए प्रेरणा है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाती है कि किसी भी शारीरिक आलोचना या शारीरिक क्षमता की कमी के बावजूद अगर आत्मविश्वास और मेहनत के साथ किसी रास्ते पर आगे बढ़ा जाए तो असंभव कुछ भी नहीं है। किमाया की सफलता एक आदर्श है कि आत्मविश्वास और समर्पण से कोई भी संघर्ष हराया जा सकता है।

——————-‐———————————————

संवाददाता

देवांशी सिंह

देवांशी सिंह दून विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य की एमए की छात्रा हैं। उन्हें साहित्य और पत्रकारिता में गहरी रुचि है। अपनी रचनात्मकता और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से, देवांशी युवा साहित्यिक एवं पत्रकारिता क्षेत्र में एक उभरती हुई आवाज बनकर सामने आ रही हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *