राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने बुधवार को कुमाऊँ विश्वविद्यालय द्वारा “जियोहज़ार्ड रिस्क असेसमेंट एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट ऑफ़ उत्तराखण्ड हिमालय” विषय पर आयोजित संगोष्ठी में वर्चुअली संबोधित किया।
राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखण्ड की भौगोलिक परिस्थितियां आपदा हेतु बेहद संवेदनशील हैं। मानसून के समय मिट्टी के कटाव, भू-धसाव और भूकंपीय गतिविधियों के कारण निरंतर भूस्खलन का खतरा बना रहता है। उन्होंने कहा कि प्रगतिशील राष्ट्र बनने के लिए विकास एक आवश्यकता है, लेकिन हमें उत्तराखण्ड में ऐसे संसाधन जुटाने चाहिए जिनसे हम सतर्क और सुरक्षित रह सकें। यह ध्यान देना चाहिए कि संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण कार्य हेतु उचित मानकों का पालन हो। उन्होंने कहा कि इसके पालन हेतु तीन चरणों में कार्य कर सकते हैं, पहला खतरे को पहचानना, दूसरा प्रभाव क्षेत्र को पहचानना और तीसरा व सबसे महत्वपूर्ण है इसके निस्तारण के लिए सरकार, समाज व प्राइवेट संस्थानों का एक साथ मिलकर काम करना।
राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखण्ड में जल विद्युत और सौर ऊर्जा के उपयोग की अपार संभावनाएं हैं। इनका व्यापक रूप से उपयोग करके हम अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड में ईको टूरिज्म को बढ़ावा देने और स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार से न केवल पहाड़ी क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगी बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगी कि क्षेत्र के प्राकृतिक और सांस्कृतिक संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया जाए और रोजगार के अवसर पैदा हों। इससे पलायन को रोकने में भी काफी मदद मिलेगी।
राज्यपाल ने कहा कि हमें विकास के साथ-साथ आधारभूत संरचना के लिए प्राकृतिक संसाधनों के व्यापक उपयोग की ओर ध्यान देना चाहिए। हमें एक समग्र और व्यापक दृष्टिकोण पर काम करने की आवश्यकता है, जिसमें पर्यावरण, समाज और अर्थव्यवस्था के आयाम शामिल हों। उन्होंने कुमाऊँ विश्वविद्यालय को इस महत्वपूर्ण विषय पर मंथन सत्र आयोजित करने पर बधाई देने के साथ ही कहा कि इस प्रकार के मंथन व चर्चाओं की राज्य को बहुत आवश्यकता है। राज्यपाल ने कहा कि इस सत्र से निकलने वाले निष्कर्ष आने वाले समय में आपदा की रोकथाम के लिए निश्चित रूप से सहायक सिद्ध होंगे।