इन दिनों जिस तरह से पूरी दुनिया में नई सूचना तकनीक से दुनिया बदल रही है उसी के साथ-साथ जिस तरह का सोशल मीडिया का प्रभाव पूरे समाज अर्थात पूरी दुनिया में दिख रहा है : अद्भुत और नया तरीका है । इस समय सच कहना हो तो यह है कि आज पूरा वैश्विक परिदृश्य तथा हमारा जीवन इस संजाल की दुनिया में इस सोशल मीडिया की गिरफ्त में है।
यह इन दिनों पूरी तरह नई तकनीक तथा बाजार के नियंत्रण में है और हम इसके बिना एक पल भी नहीं रह सकते । इस समय आए दिन जो सर्वेक्षण हो रहे हैं उनमें बदलती हुई भाषा के साथ-साथ विशेषकर हिंदी तथा भारत की अन्य भाषाओं के बारे में जो सर्वेक्षण सामने आ रहे हैं वह बताते हैं कि उनमें दूसरी भाषाओं के शब्दों की बढ़ोतरी अर्थात उनका समाहित होना सही बात है ।
इन दिनों यह शब्द अब उन्हीं की भाषा में इस तरह से मिल गए हैं कि वह लगते ही नहीं है कि वह कन्नड़ तेलुगू गुजराती पंजाबी के शब्द हैं अथवा हिंदी के हैं हिंदी जो आज सेतू भाषा के तौर पर पूरे विश्व में स्वाभिमान है अतः हिंदी का प्रचार प्रसार और वैज्ञानिक नजरिया इसको वैश्विक रोजगार परक भाषा के रूप में स्थापित कर रहा है ।
इस समय यही आज की हिंदी की भाषा की ताकत है । इस तरह से सर्वेक्षण बताते हैं कि हमारी पूरी लाइफ स्टाइल हमारा जीवन जीने का तरीका इन दिनों नई सूचना प्रौद्योगिकी की नई तकनीक ने समूचे रूप में बदल दिया है और हमारी नई पीढ़ी इसकी इस कदर गुलाम बन चुकी है कि वह एक सेकंड भी इंस्टेंट सूचनाओं के बिना रह नहीं सकते ।
इसका सीधा-सीधा अर्थ यह है कि लगातार बढ़ता हुआ स्क्रीन टाइम युवाओं के साथ- साथ, हर आयु वर्ग के लोगों को पूरी दुनिया में अपनी चपेट में ले रहा है ।
भारत में इसकी स्थिति कुछ दूसरी तरह की है क्योंकि एक समझ और मनोविज्ञान जो इस सूचना तकनीक की उपयोगिता तथा रचनात्मक प्रतिभा का होना चाहिए था हमारे यहां पर अभी तक ऐसा हुआ नहीं है और ना ही आगे होने की संभावना है क्योंकि हम इस सूचना तकनीक को जिस तरह से उपयोग अर्थात भाषाई स्तर से लेकर सामाजिक राजनीतिक हथियार के टूल्स के तौर पर नफरतें वाद विवाद एवं हिंसा हिंसा के बीच का एक हथियार बना रहे हैं वह इस नई सूचना तकनीक के हिस्से की रचनात्मकता को बंद करता है ।
यह हमारी पहचान को भी उजागर करता है कि आने वाले दिनों में भारतीय परिवेश में हम किस तरह की नई दुनिया देख रहे हैं और किस तरह की नई नस्ल भारत की आने वाली दुनिया की होगी ।
एक नया संसार है इन दिनों जिनका भाषा के प्रति कोई मोह नहीं होगा । किंडल से लेकर इलेट्रॉनिक भाषाएं जिस तरह से नई पीढ़ी को आत्मसात कर रही हैं वह दिन दूर नहीं है जब पूरी दुनिया रिप्लेस हो जाएगी और मुझे तो यह भी सच लगता है कि आने वाले दिनों में हमें भाषा के उन स्रोतों को बिल्कुल ही खत्म ना कर दें जो भाषा की उत्पत्ति करती है क्योंकि इन दिनों जिस तरह की मिली-जुली अर्थात हाइब्रिड भाषा तथा वर्तनी की अशुद्धियों से शॉर्टकट भाषा इन संप्रेषण आदि में है वह भी कोई ज्यादा अच्छा नहीं है ।
आज भाषा में देखें , जिनमें ट्विटर से लेकर फेसबुक व्हाट्सएप पॉडकास्ट तथा अन्य भाषाओं का संप्रेषण आपको मिलता है, वह कभी हमारी भाषा नहीं थी । भास्कर द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में बताया गया है कि जिस तरह का देश दुनिया का माहौल बना है उसने हमारी जिंदगी को 360 डिग्री तक बदल दिया है । 36 परसेंटेज युवाओं में मौत और अकेलेपन कारण इस कदर बढ़ गया है हालांकि 20% में यह कम भी हो गया है । यह भी एक सोशल मीडिया की ही देन है 70% युवा देरी से जागते हैं परंतु जो सबसे ज्यादा जो हमारे आलेख का विषय है वह यह है कि सैंतालीस प्रशांत प्रतिशत लोग सक्रिय टाइम औसतन रूप में बढ़ गया है । 39% लोग सबसे ज्यादा व्हाट्सएप पर बिता रहे हैं । फिर यूट्यूब का नंबर आता है जिसमें 39% फेसबुक 23% इंस्टा ग्राम 25% और ट्विटर पर शेर प्रतिशत लोग ही दिखाई देते हैं और यह सर्वेक्षण यह भी बताता है कि 48% युवाओं ने खाली वक्त में उम्र को देखा लाइव शो को देखा ।आज की रील को देखा और यह भी 19% तथा 12% आंकी गई है । इमोशनल चेंज में 43% युवा आ रहे हैं परंतु सच यह है कि इस तकनीक ने हमारा सब कुछ बदल दिया है ।
संचार का संप्रेषण तथा सूचना प्रौद्योगिकी का सर्वेक्षण यह बताता है कि सोशल मीडिया के जरिये कई दावे होते हैं, इन दावों में कोई भी सच नहीं होता। इन की सच्चाई यह है कि कोई भी दुनिया का उत्पाद एकदम चमत्कार नहीं कर सकता । इन पर आंखें मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए क्योंकि सोशल मीडिया के द्वारा तथा भाषाओं के हाइब्रिड मैसेज सुंदर भाषा में चटक और तड़का लगाकर प्रस्तुत किए जाते हैं। वह इतना सम्मोहित कर लेते हैं कि आपको पता ही नहीं रहता कि असली विज्ञापन असली चीज किस तरह की है यह सब के साथ हो रहा है ।
इस समय दवाइयों के विज्ञापन भ्रमित करते हैं और उत्पादनओं का यह हिस्सा तथा विशेषज्ञ संस्थानों की जांच पड़ताल करें तो आपको पता चलेगा इतना पैसा उत्पादन पर नहीं है, जितना उसके विज्ञापन पर है अर्थात देखते रहना चाहिए और बिकते रहना चाहिए ।
इसी तरह आज की भाषा विशेषकर हिंदी के बारे में कहा जा सकता है कि वह विज्ञापन की भाषा आज इस तरह की भाषा हो गई है जिसमें हिंदी अंग्रेजी और आंचलिक भाषा का पुट लिए हुए विज्ञापन का तड़का है । आधी हिंदी, आधी अंग्रेजी की सभ्यता से जुड़ी हुई इस भाषा को बाज़ार की भाषा और मीडिया विज्ञापन की भाषा समाचार पत्रों की भाषा टेलीविजन की भाषा तो कहा जा सकता है परंतु देश की सेतु भाषा और भारतीय संस्कृति के साथ जुड़ आपकी भाषा तो कतई नहीं कहा जा सकता ।
इन दिनों यही समय का सच है जो हमें बदल रहा है और यह तकनीक आपकी जिंदगी की वैलनेस, आपकी जिंदगी की रचनात्मकता, आपकी भाषा, और आप के अचार-व्यवहार को इस तरह से नियंत्रित कर रही है कि अब पूरी दुनिया उपभोक्ता बाजार तथा नई तकनीक के संप्रेषण से एक छोटी सी टेलीविजन की स्क्रीन से लेकर मोबाइल की स्क्रीन पर आपके साथ हो गई है अर्थात बंद गई है।
इन दिनों इससे जो परोसा जाएगा वही समय का सच होगा तो इस सच के साथ- -साथ आप ही बोलचाल भाषा सेतु भाषा हिंदी का जो परिदृश्य आपको दिखता है वह अद्भुत है और यह बदलती दुनिया में बदलते हुए विज्ञान के साथ नए समाज की ओर भारत में विशेषकर 130 करोड़ लोगों से बढ़कर 150 करोड लोगों की भाषा आने वाले दशकों में जिस तरह से बढ़ जाएगी ।
यह एक नया चेहरा है और यह चिंता का विषय हो सकता है परंतु दुनिया बदल रही है । समय इसी तरह चलता है । इसी को आत्मसात करके एक समय के यथार्थ को अंगीकार करना चाहिए जिसमें नई भाषाएं नए शब्द, नई हिंदी के लिए बहुत से अवसर हैं जो रोजगार देते हैं जो इसको पूरे पूर्व से पश्चिम उत्तर से दक्षिण पूरे विश्व पर इन दिनों स्थापित कर रहे हैं ।
यहां पर यह तकनीक का कमाल है । यह भाषाई सांस्कृतिक आदान-प्रदान का असर है जो नई हिंदी को बदल रहा है ।
लेखक
प्रो. डॉ .कृष्ण कुमार रत्तू
लेखक सुप्रसिद्ध ब्रॉडकास्टर एवं मीडिया विशेषज्ञ हैं।
इस लेख पर आप अपनी प्रतिक्रिया 94787 30156 मोबाइल पर भी दे सकते हैं।