जूते बेच कर उठाता था खर्चा, अब 38वें नेशनल गेम्स में जीता स्वर्ण पदक: तेजस शिरसे की प्रेरणादायक यात्रा

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महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर के निवासी तेजस शिरसे ने हाल ही में 38वें नेशनल गेम्स में 110 मीटर हर्डल्स में स्वर्ण पदक जीतकर साबित किया कि अगर किसी में जुनून और मेहनत हो,तो वह अपनी ज़िंदगी में हर सफलता हासिल कर सकते हैं l एक वक्त था जब वे जूते बेच कर खर्च उठाया करते थे आज बड़ी संगठन करवाती हैं तेजस से अपना प्रचार l तेजस की कहानी सिर्फ उनकी सफलता की नहीं, बल्कि संघर्ष और समर्पण की भी है।

गरीबी और संघर्ष की शुरुआत
तेजस शिरसे का जीवन एक संघर्ष था। एक गरीब परिवार से आने वाले तेजस ने अपने शुरुआती दिनों में कभी भी हार नहीं मानी। उन्हें अच्छी ट्रेनिंग के लिए संसाधन नहीं मिले, लेकिन उनके जज़्बे ने उन्हें कभी भी रुकने नहीं दिया। तेजस ने बताया, “मैं बहुत ही गरीब परिवार से हूँ, इसलिए मैंने खुद ही कमाई के जरिए अपने खर्चे उठाए। शुरूआत में, मैं जूते बेचता था, जिससे कि मैं अपना खर्चा पूरा कर सकूं और खेल से संबंधित हर ज़रूरत को पूरा कर सकूं।”

उनके पास अच्छे स्पाइक्स भी नहीं थे, और शुरू में उन्हें प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए स्पाइक्स उधार लेने पड़े थे। तेजस कहते हैं, “मेरे पास अच्छे स्पाइक्स तक नहीं थे, इसलिए मैंने प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए किसी से स्पाइक्स उधार लिए, पर मैंने कभी हार नहीं मानी मैं जानता था की कोई बाधा मुझे रोक नहीं सकती।

तेजस का लगाव खेलों के प्रति बहुत गहरा था। अपने संघर्ष के बीच, वह कभी भी अपने सपने से दूर नहीं हुए। उन्होंने कहा, “मेरे शुरुआती दौर में मुझे अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं मिला, मैंने कभी सिंथेटिक ग्राउंड नहीं देखा था, मैं अपनी ट्रेनिंग मिट्टी के मैदान पर करता था, लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी ।”

एक दिन, उनकी मुलाकात एक कोच से हुई, जिन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शन दिया। तेजस ने कहा, “मेरे कोच ने मुझमें जस्बा देखा और मुझे डेढ़ साल तक निःशुल्क ट्रेनिंग दी क्यूंकि वे जानते थे की मेरी आर्थिक स्थति ठीक नहीं थी । मैं उनका बहुत शुक्रगुजार हूँ, आज मैं जो कुछ भी हूँ, वह उन्हीं की वजह से हूँ।”

राष्ट्रीय स्तर पर सफलता
तेजस ने जिस तरह से कठिन परिस्थितियों का सामना किया और फिर 38वें नेशनल गेम्स में स्वर्ण पदक जीतकर यह साबित किया कि यदि मेहनत और सही मार्गदर्शन मिले तो कोई भी इंसान अपने सपनों को साकार कर सकता है। वह यह भी कहते हैं, “जिस तरह से मेरे कोच ने मेरी प्रतिभा को पहचाना और मुझे बचपन से ही ट्रेनिंग दी, वैसे ही सभी को युवा पीढ़ी की प्रतिभा को पहचान कर उनका खेलों के प्रति सही मार्गदर्शन करना चाहिए, ताकि वे देश का नाम रोशन कर सकें।”

तेजस की प्रेरणा
तेजस शिरसे की कहानी आज उन सभी युवा खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा है, जो आर्थिक तंगी, संसाधनों की कमी और संघर्ष के बावजूद अपने सपनों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। तेजस ने यह साबित कर दिया कि अगर मन में दृढ़ संकल्प हो और सही मार्गदर्शन मिले, तो कोई भी कठिनाई आपको सफलता से दूर नहीं रख सकती।

उनकी इस सफलता ने न केवल महाराष्ट्र, बल्कि पूरे देश को यह संदेश दिया कि मेहनत, समर्पण और सही दिशा में मार्गदर्शन के साथ कोई भी युवा अपनी किस्मत बदल सकता है और सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है।


संवाददाता

देवांशी सिंह

देवांशी सिंह दून विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य की एमए की छात्रा हैं। उन्हें साहित्य और पत्रकारिता में गहरी रुचि है। अपनी रचनात्मकता और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से, देवांशी युवा साहित्यिक एवं पत्रकारिता क्षेत्र में एक उभरती हुई आवाज बनकर सामने आ रही हैं।

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