वर्ष 2000 में उत्तराखंड राज्य की स्थापना हुई। उत्तराखण्ड की स्थापना के पीछे कई लोगों के संघर्ष और त्याग की दास्तान है।उत्तरप्रदेश से अलग होने का उद्देश्य था पहाड़ियों का समान विकास। चूंकि पहाड़ की स्थिति-परिस्थिति भिन्न है, तो यहाँ के मुद्दे भी भिन्न हैं। विगत वर्षों से निरंतर, उत्तराखंड में पूर्ण विकास का मुद्दा बरकरार है। उसके ऊपर एक मुद्दा है पलायन का मुद्दा।
Times of india की मार्च,2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2018 से 2022 तक, तीन लाख से ज्यादा लोग अपना स्थान छोड़, उत्तराखंड के विभिन्न राज्यों से पलायन कर गए। राज्य में स्थाई पलायन में कमी आई है, जबकि अस्थाई पलायन का आंकड़ा लगभग पहले जैसा ही बना हुआ है।
उत्तराखंड से पलायन के चलते कई गांव बिल्कुल खाली हो गए हैं। इसके चलते, ऐसे गांव जहां लोग गुमशुदा, तो मकान खाली, अब खंडर पड़े हैं। ऐसे खंडरनुमा गांव अब भूतिया गांवों के नाम से प्रचलित हो रहें हैं। एक रिपोर्ट के चलते उत्तराखंड में 1,700 के लगभग गांव भूतिया हो गए हैं, जबकि 1,000 बस्तियों में 100 से कम लोग हैं।
ऐसे में कुछ गांव जो बिल्कुल खाली होने से बचे हैं, उसके पीछे की खास वज़ह है, पहाड़ में रहने वाले पहाड़ी।
किसी गांव का खत्म हो जाना, सिर्फ लोंगो का एक जगह से चला जाना नहीं होता, बल्कि वहां की संस्कृति, भाषा, रीति-रिवाज, जीव-जंतु, अपितु जीवन शैली का भी खत्म हो जाना होता है।
वर्तमान परिस्थिति में कुछ पहाड़ी ऐसे भी हैं, जो अपने पहाड़, अपने गांव में बने हुए हैं। कुछ ऐसे पहाड़ी भी हैं जो सोशल मीडिया के माध्यम से अपने पहाड़ और उससे जुड़ी संस्कृति से लोगों को रूबरू करा रहें हैं।
Jagritimedia, आपको एक ऐसे ही शख्स से मिलवा रहा है, जिन्होंने अपने पहाड़ के गांव में बने रहने का फैसला किया और सोशल मीडिया के माध्यम से अपने गांव की संस्कृति को सबसे रूबरू कराने का फैसला किया।
कमलेश सिंह रावत उर्फ Kelly , सोशल मीडिया पर KellyUttarakhand के नाम से एक पेज चलाते हैं जिसमे पहाड़ के रस्मों – रिवाज , परम्पराएँ , रिश्ते – नाते , सुःख -दुःख , संघर्ष को दर्शाया जाता है।
कमलेश कहते हैं कि KellyUttarakhand– “एक प्रयास है पहाड़ों में रहने वाले पहाड़ियों के जीवन को नजदीक से समझने का जिन्हें हम पहाड़ी बताने में अक्सर झिझकते है लेकिन दिल में हमेशा महसूस करते है। यह प्रयास है पहाड़ियों को फिर से उनकी जड़ों से रूबरू कराने का , और जिन्हें पहाड़ो से , पहाड़ियों से लगाव है – उन्हें समझाने का – हमेशा मुस्कराते मिलते पहाड़ियों के सीने में कितना दर्द छुपा होता है ।”
क्लिक कीजिए देखने के लिए Kellyuttarakhand का instagram video
कमलेश, रावतखोला गांव, अल्मोड़ा के रहने वाले हैं। गांव की आबादी मात्र 150 है। इस गांव से भी रोजगार की तलाश, व उच्च शिक्षा के लिए बहुत से लोग निकल गए हैं। जो लोग गांव में रह गए हैं वो खेती-बाड़ी पर निर्भर हैं। कुछ लोग छोटा-मोटा रोजगार भी कर रहें हैं।
कमलेश कहतें हैं कि मुझे अपना पहाड़ और सकून अच्छा लगता है। उन्हें लगता है कि उन्हें अपने गांव को अब social media के जरिए भी आगे लाना चाहिए।
Jagritimedia से खास बातचीत में वह बताते हैं कि जब मैंने वीडियो बनाना शुरू किया, तो मुझे दूसरों से डर लगने लगा, लोग क्या सोचेंगे? मैं एक बड़ी भीड़ में कैसे शूटिंग करूँगा? क्या यह मेरे लिए काम करेगा या नहीं और बहुत सी अन्य चीजें?
ऐसे लोग थे जो मुझे ट्रोल करते थे और मेरा मजाक उड़ाते थे, दूसरी तरफ ऐसे लोग थे जिन्होंने मेरी सराहना की, मैं जो कर रहा हूं उसके लिए मुझे प्रेरित किया।मैंने उस बात को अपने दिमाग में रखा कि “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता दूसरे लोग आपके बारे में सोचते हैं”
बस वही करते रहो जिससे तुम प्यार करते हो! बनाते रहो! चाहे आपको ज्यादा व्यूज, लाइक, फॉलोअर्स नहीं मिल रहे हैं, अपना काम बनाए रखा।
Jagritimedia कमलेश और कमलेश जैसे लोगों को जो पहाड़ में बने रहने के लिए और अपनी संस्कृति को बचाने में प्रयासरत हैं, सलाम करता है। क्यूंकि आसान नहीं होता विषम परिस्थितियों में बने रहना। पर यह भी सच है कि हमें, विशेषकर सभी पहाड़ियों को अपने पहाड़, अपने गांव और उनमें बसी संस्कृति को बचाने के लिए सयुंक्त प्रयास करने की जरूरत है।