उत्तराखंड को बने 22 साल हो गए हैं आज भी पहाड़ी क्षेत्रों में कई समस्याओं को लेकर कृषक हो या काश्तकार उन्हें बार-बार सरकार के आगे गिड़गिड़ाना पड़ता है । उत्तराखंड के उत्तरकाशी हर्षिल का सेब हो या फिर चकराता का अपनी आज तक नई पहचान नहीं बना पाया है। उसका कारण है उद्यान विभाग की अनदेखी आज भी सेब के काश्तकार अपनी सेब की खड़ी फसल के लिए अनुवृत्ति ( subsidy ) में मिलने वाली सेब की बेटियों के लिए उद्यान विभाग से गुहार लगानी पड़ रही है। परंतु अभी तक उद्यान विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के चलते काश्तकारों को हिमाचल से आई पेटियों से अपने सेब भेजने पड़ रहे है ।
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