विश्व आपदा प्रबंधन सम्मेलन 2025 में जुटे विश्व से वैज्ञानिक

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देहरादून: 

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह की गरिमामयी उपस्थिति में देहरादून स्थित ग्राफिक एरा सिल्वर जुबली कन्वेंशन सेंटर में आयोजित विश्व आपदा प्रबंधन सम्मेलन एवं 20वें उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सम्मेलन–2025 में बतौर विशिष्ट अतिथि प्रतिभाग किया। इस अवसर पर एनडीएमए के सदस्य डॉ. दिनेश कुमार असवाल की पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।

कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धि हासिल करने वाली प्रतिभाशाली महिला वैज्ञानिकों को सम्मानित किया। इस अवसर पर राज्यभर के विभिन्न शोध एवं शैक्षणिक संस्थानों से चयनित वैज्ञानिकों को “Young Women Scientist Achievement Award–2025” तथा “UCOST Young Women Scientist Excellence Award” प्रदान किए गए। मुख्यमंत्री ने कहा कि विज्ञान, अनुसंधान और तकनीक आधारित नवाचार आपदा प्रबंधन को सशक्त और प्रभावी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि उत्तराखंड की युवा महिला वैज्ञानिकों का शोध कार्य न केवल राज्य बल्कि देश और विश्व के लिए प्रेरणादायक है।

सम्मानित वैज्ञानिकों में यंग वीमेन साइंटिस्ट अचीवमेंट अवार्ड–2025 (45 वर्ष तक) के अंतर्गत डॉ. अंकिता राजपूत, डॉ. गरिमा पुनेठा, डॉ. ममता आर्या, डॉ. हर्षित पंत, डॉ. प्रियंका शर्मा और डॉ. प्रियंका पांडे शामिल रहीं। वहीं यूकॉस्ट यंग वीमेन साइंटिस्ट एक्सीलेंस अवार्ड (30 वर्ष तक) के अंतर्गत डॉ. प्रियंका उनियाल, पलक कंसल, राधिका खन्ना, स्तुति आर्या तथा श्रीमती देवयानी मुंगल को सम्मानित किया गया।

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि इस विश्व आपदा सम्मेलन के आयोजन के लिए उत्तराखंड से बेहतर स्थान और कोई नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय संस्थानों के सहयोग से आयोजित यह सम्मेलन आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में एक दूरदर्शी और अत्यंत महत्वपूर्ण पहल है। उन्होंने घोषणा की कि हरिद्वार, पंतनगर और औली में अत्याधुनिक मौसम पूर्वानुमान राडार स्थापित किए जाएंगे, जो राज्य में मौसम संबंधी चेतावनी तंत्र को और अधिक मजबूत बनाएंगे। डॉ. सिंह ने “सिलक्यारा विजय अभियान” का उल्लेख करते हुए कहा कि इस अभियान ने सिद्ध किया कि दृढ़ इच्छाशक्ति, मजबूत नेतृत्व और वैज्ञानिक दक्षता किसी भी जटिल चुनौती को सफलतापूर्वक पार कर सकती है।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि उन्हें बताया गया है कि इस तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में विभिन्न हिमालयी राज्यों के प्रतिनिधि तथा देश-विदेश से आए वैज्ञानिक और शोधकर्ता हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन से जुड़ी चुनौतियों पर विस्तृत विचार-विमर्श करेंगे। साथ ही, तकनीकी नवाचार, अनुसंधान सहयोग तथा वैश्विक साझेदारी को और मजबूत करने की दिशा में ठोस रणनीतियाँ बनाई जाएँगी। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस सम्मेलन से प्राप्त सुझाव और समाधान न केवल उत्तराखंड, बल्कि पूरे विश्व के लिए उपयोगी सिद्ध होंगे।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमालय केवल पर्वत श्रृंखला नहीं, बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप का जीवन स्रोत है। यहाँ की नदियाँ, ग्लेशियर और जैव विविधता पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन, अनियंत्रित विकास और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से हिमालय का संतुलन प्रभावित हो रहा है। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बदलते मौसम पैटर्न, बढ़ती वर्षा की तीव्रता, अप्रत्याशित क्लाउडबर्स्ट और भूस्खलन की घटनाओं ने नई चिंता उत्पन्न की है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए वैज्ञानिकों, नीति-निर्माताओं और क्षेत्र विशेषज्ञों के बीच बेहतर समन्वय अत्यंत आवश्यक है। इसी दिशा में यह विश्व आपदा प्रबंधन सम्मेलन एक सेतु का कार्य करेगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में देश में आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए “4P मंत्र—Predict, Prevent, Prepare और Protect” के आधार पर 10 सूत्रीय एजेंडा लागू किया गया है। इसका उत्कृष्ट उदाहरण सिलक्यारा सुरंग बचाव अभियान के दौरान देखने को मिला, जहाँ 17 दिनों के अथक प्रयासों से 41 श्रमिकों को सुरक्षित बचाया गया। यह अभियान आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में दर्ज हुआ। उन्होंने कहा कि इस अभियान के बाद राज्य सरकार ने आपदा प्रबंधन को राहत एवं बचाव तक सीमित न रखते हुए वैज्ञानिक तकनीकों, जोखिम आकलन, एआई आधारित चेतावनी प्रणाली और संस्थागत समन्वय को मजबूत करने की दिशा में ठोस पहल की है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में डिजिटल मॉनिटरिंग सिस्टम, ग्लेशियर रिसर्च सेंटर, जल स्रोत संरक्षण कार्यक्रम और जनभागीदारी के माध्यम से हिमालय के दीर्घकालिक संरक्षण के प्रयास जारी हैं। उन्होंने बताया कि रैपिड रिस्पॉन्स टीमें गठित करने, ड्रोन सर्विलांस, जीआईएस मैपिंग, सैटेलाइट मॉनिटरिंग और उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में सेंसर आधारित झील मॉनिटरिंग पर भी कार्य किया जा रहा है। साथ ही, अर्ली वार्निंग सिस्टम को सुदृढ़ किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पौधारोपण, जल संरक्षण और पर्यावरण सुरक्षा के प्रति जनजागरूकता कार्यक्रमों को भी तेजी से आगे बढ़ाया गया है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए सौर ऊर्जा सहित हरित ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में जल संरक्षण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्प्रिंग रिजुविनेशन अथॉरिटी (SARA) का गठन किया गया है, जिसके अंतर्गत पारंपरिक जल स्रोतों का चिन्हीकरण और पुनर्जीवन कार्य किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि राज्य में “डिजिटल डिपॉजिट रिफंड सिस्टम” लागू किया गया है, जिसके माध्यम से प्लास्टिक वेस्ट प्रबंधन में उल्लेखनीय सफलता मिली है और अब तक हिमालयी क्षेत्र में 72 टन कार्बन उत्सर्जन कम हुआ है। इसी प्रकार अपनाए गए नवाचारों का परिणाम है कि नीति आयोग के एसडीजी इंडेक्स में उत्तराखंड को देशभर में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत की सनातन संस्कृति में प्रकृति को माँ के रूप में पूजने की परंपरा है। पर्यावरण संरक्षण के प्रति आस्था, परंपरा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को साथ लेकर आगे बढ़ना समय की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार जैव-विविधता और पर्यावरणीय संतुलन को सुरक्षित रखने के अपने ‘विकल्प-रहित संकल्प’ के साथ निरंतर कार्य कर रही है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यह सम्मेलन आपदा प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में विश्व को नई दिशा प्रदान करेगा।

कार्यक्रम में राज्यसभा सांसद नरेश बंसल, सचिव श्री नितेश झा, यूकॉस्ट महानिदेशक दुर्गेश पंत, ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय के चेयरमैन श्री कमल घनशाला, विभिन्न देशों के राजदूतगण, केंद्र एवं राज्य सरकार के अधिकारीगण, देश-विदेश से आए शोधकर्ता, विषय विशेषज्ञ तथा ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय परिवार के सदस्य एवं छात्र उपस्थित रहे।

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