मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक ऐसा काम कर दिखाया है जो अभी तक उत्तराखण्ड का कोई भी मुख्यमंत्री नहीं कर पाया। धामी ने बाहरी राज्यों से उपखनिजों के आयात पर रोक लगाकर खनन माफिया को जोर का झटका दिया है। ये खनन माफिया हमारे राज्य के नहीं बल्कि पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश और हरियाणा के हैं। धामी सरकार के इस कदम से उत्तराखण्ड को सालाना लगभग 40 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान होने से बचने की उम्मीद है। सरकार के इस आदेश पर सख्ती से अमल हुआ तो यमुना जैसी नदियां हमारे राज्य के लिए ‘पैसों का पेड़’ साबित होंगी। धामी सरकार की इस करवाई से खनन माफिया में खलबली मची हुई है।
बात अजब है पर सच है। हमारे राज्य की खनन सामग्री पर हिमाचल प्रदेश के खनन माफिया सरेआम डाका डाल रहे हैं। पिछले एक दशक से पछवादून क्षेत्र में यमुना नदी पर बाहरी राज्यों के खनन माफिया का कब्जा बरकरार है। स्थिति यह है कि उत्तराखण्ड की सीमा में यमुना के किनारे उपखनिज का भण्डार है लेकिन हिमाचल के खनन माफिया इसे लूटकर ले जाते हैं और हरियाणा के खनन कारोबारियों के नाम पर काटी गई फर्जी रसीदों के जरिए यह माल बेचने के लिए फिर से उत्तराखण्ड में लाया जाता है। इस काले कारोबार में उत्तराखण्ड के सम्बंधित महकमों के कुछ अफसर और सफेदपोश भी शामिल हैं। सिर्फ पछवादून क्षेत्र की ही बात करें तो टैक्स चोरी के इस धंधे से हमारे राज्य को सालाना 40 करोड़ रुपये से ज्यादा का चूना लगता आया है।
इस पूरे प्रकरण को बारीकी से समझना होगा। यमुना को गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी माना जाता है। यमुनोत्री से निकलने वाली यमुना नदी देहरादून जिले के पछवादून क्षेत्र के लगभग 15 किलोमीटर हिस्से से होकर गुजरती है। यहां नदी के बायें छोर पर उत्तराखण्ड और दांये में हिमाचल प्रदेश की सीमा स्थित है। पहाड़ी इलाके से निकली यमुना जब इस क्षेत्र में पहुंचती है तो अपने दोनों तटों में उपखनिजों का भण्डार भर देती है। खराब पॉलिसी के कारण अब तक उत्तराखण्ड सरकार इस प्राकृतिक संसाधन को समुचित दोहन नहीं कर पाई है। जबकि हिमाचल प्रदेश के खनन माफिया इस पर अपना एकाधिकार जमाए हुए है। हिमाचल प्रदेश की सीमा खोदरी से बहराड़ गांव तक यमुना नदी से सटी हुई है जबकि इसी हिस्से के दूसरे छोर पर डाकपत्थर से धौलातप्पड़ तक उत्तराखण्ड की सीमा स्थित है। पिछले 10 वर्षों में हिमाचल प्रदेश ने निजी पट्टों पर लाइसेंस जारी कर यमुना के किनारे 22 स्टोन क्रशर स्थापित करवाए हैं जबकि उत्तराखण्ड की सीमा में हमारी सरकार ने एक भी स्टोक क्रशर की अनुमति नहीं दी है। इतना ही नहीं वर्ष 2009 से उत्तराखण्ड की सीमा में यमुना पर खनन पट्टे के लाइसेंस जारी नहीं किए गए और न ही खनन लॉट नीलाम किए गए। जबकि दूसरे छोर पर पर्याप्त उपखनिज न होने के बावजूद 22 स्टोन क्रशर संचालित हो रहे हैं। हो यह रहा है कि नदी में पानी कम होने के कारण हिमाचल के खनन माफिया उत्तराखण्ड की सीमा में प्रवेश कर उपखनिज की लूट कर रहे हैं। हमारी सीमा से रॉ मटीरियल ले जाकर स्टोन क्रशर में रोड़ी, गिट्टी और डस्ट तैयार की जा रही हैं। चूंकि इन स्टोन क्रशर संचालकों के पास अपनी वैध खनन सामग्री नहीं है लिहाजा वे हरियाणा के खनन कारोबारियों के फर्म की रसीद बुक इस व्यवसाय में इस्तेमाल कर रहे हैं। जिनके जरिये ये माल उत्तराखण्ड पहुंचाया जा रहा है। ये रसीद बुक भी फर्जी बताई जा रही हैं।
बस यहीं से उत्तराखण्ड के राजस्व का चूना लगाने का खेल शुरू हो जाता है। हिमाचल प्रदेश से कुल्हाल बैरियर होते हुए उपखनिज से लदे ट्रक देहरादून लाये जाते हैं। ट्रक निर्धारित भार क्षमता और जीएसटी कटी रसीद के साथ उत्तराखण्ड में प्रवेश करें और उसका अभिगमन शुल्क जमा करें इस पर निगरानी के लिए कुल्हाल में वन विभाग और पुलिस चौकी का बैरियर लगाया गया है। लेकिन होता यह है कि इस बैरियर व चौकी पर तैनात कार्मिक ओवरलोडेड ट्रकों (डम्फर) को फर्जी दस्तावेजों के साथ उत्तराखण्ड में प्रवेश करने देते हैं। प्रत्येक वाहन से सिर्फ निर्धारित भार क्षमता पर ही अभिगमन शुल्क लिया जाता है जबकि वास्तव में वे ओवरलोडेड होते हैं। यहां पर जीएसटी कटी वैध रसीदों की अनदेखी और पर्याप्त अभिगमन शुल्क न वसूले जाने के कारण उत्तराखण्ड सरकार को राजस्व की भारी क्षति हो जाती है।
एक अनुमान के मुताबिक कुल्हाल के रास्ते प्रतिदिन उपखनिज से लदे 600 डम्फर उत्तराखण्ड की सीमा में प्रवेश करते हैं। इनकी अनाधिकृत एंट्री से रोजाना लगभग 12 लाख रुपये की चपत उत्तराखण्ड को लगती है जो साल का 40 करोड़ से ऊपर बैठता है। जानकारों का मानना है कि यदि उत्तराखण्ड सरकार पूर्व की भांति यमुना तटों पर खनन लॉट खोल दे और उनकी नीलामी करे तो उपखनिजों की यह लूट काफी हद तक बंद हो जाएगी। स्टोन क्रशर का लाइसेंस देने से हमारे राज्य में लोगों को उपखनिज सस्ते दामों पर उपलब्ध होगा और साथ ही प्रदेश के राजस्व में खासी बढ़ोत्तरी होगी। सूत्रों की मानें तो उत्तराखण्ड में खनन पट्टों की नीलामी न होने देने के पीछे भी हिमाचल के खनन माफिया का ही हाथ है। कुछ नौकरशाहों और सफेदपोशों से मिलकर पिछले एक दशक से वह यह खेल खेल रहा है। पछवादून क्षेत्र ही क्या, हिमाचल का माफिया पूरे देहरादून में स्टोन क्रशर नहीं लगने देता। यह बात दावे के साथ इसलिए कही जा सकती है कि अभी तक देहरादून जनपद में एक भी स्टोन क्रशर नहीं लगा है। अपने पिछले कार्यकाल में धामी सरकार ने स्टोन क्रशर के कुछ लाइसेंस जारी किए लेकिन हिमाचल के माफिया के इशारे पर कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर इस मामले को उलझा दिया गया। अब जबकि धामी सरकार को यह खेल समझ में आया है तो मुख्यमंत्री के निर्देश पर बाहरी राज्यों से उत्तराखण्ड में उपखनिज के आयात पर रोक लगा दी गई है। इसके लिए बाकायदा तेजतर्रार अधिकारियों की एक कमेटी भी बनाई गई है। बीते 4 अप्रैल को जारी इस आदेश के बाद कुल्हाल बॉर्डर पर 11 डम्फरों को सीज कर दिया गया है। इसके अलावा कई अन्य ओवर लोडेड डम्फरों से लाखों रूपए अर्थदण्ड के रूप में वसूले जा चुके हैं। ये कार्रवाई बदस्तूर जारी है। बेपनाह कर्ज में डूबे उत्तराखण्ड के लिए इस तरह के बोल्ड निर्णय संजीवनी साबित हो।
Report: Deepak Bhardwaj ( Senior Journalist)