देहरादून की होनहार जूडो खिलाड़ी उन्नति शर्मा ने 38वें नेशनल गेम्स के 63 कि.ग्रा वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है। उन्नति ने 11 साल की उम्र में जूडो की शुरुआत की थी, और तब से लेकर अब तक उन्होंने कड़ी मेहनत और समर्पण से खुद को साबित किया है।
हाल ही में वरिष्ठ राष्ट्रीय स्तर पर सिल्वर जीतने के बाद मिली निराशा के बावजूद, उन्होंने अपने असली लक्ष्य को पूरा किया-उत्तराखंड की मिट्टी से स्वर्ण पदक लाना।
उन्नति के शुरुआती दिन आसान नहीं थे। जब उन्होंने जूडो खेलना शुरू किया, तब देहरादून में इस खेल की सुविधाएँ बेहद सीमित थीं। 15 साल की उम्र से उन्होंने परेड ग्राउंड में कड़ी मेहनत और नियमित अभ्यास शुरू किया। आज भी, उन दिनों की कठिनाइयाँ उनके चेहरे पर दृढ़ संकल्प की झलक छोड़ जाती हैं।
उन्नति का संघर्ष सिर्फ खेल तक सीमित नहीं रहा। आर्थिक तंगी के बावजूद उनके पिता, जो एक परचून की दुकान चलाते हैं, ने हमेशा अपनी बेटी का पूरा समर्थन किया।
स्वर्ण पदक जीतने के बाद, उन्नति ने साबित कर दिया कि कड़ी मेहनत और लगन से हर बाधा को पार किया जा सकता है। हालाँकि वरिष्ठ राष्ट्रीय स्तर पर सिल्वर पर रुक जाने पर वह थोड़ी निराश थीं, लेकिन उन्होंने इसे अपने अगले लक्ष्य की प्रेरणा बना लिया। उन्नति कहती हैं, “इंजरीज़ खेल का हिस्सा हैं, और मैं इन्हें हमेशा सकारात्मक रूप से लेती हूँ। अगर मैंने मेहनत से स्वर्ण पदक जीता है, तो हर कोई आगे बढ़ सकता है।”
अब उन्नति ने अपने प्रशिक्षण को बैंगलोर के IIAS (Inspire Institute of Sports) में जारी रखा है। उनका मानना है कि जूडो अब सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि एक पहचान बन चुका है, और राष्ट्रीय खेलों में इसे शामिल किए जाने के बाद इसकी और भी अधिक प्रतिष्ठा बढ़ी है। उन्नति की यह सफलता न केवल उन्हें देश के शीर्ष खिलाड़ियों में शामिल करती है, बल्कि वह उत्तराखंड और पूरे देश के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं।
संवाददाता
अदिति कंडवाल
अदिति कंडवाल दून विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य में एमए की छात्रा हैं। उन्हें साहित्य और पत्रकारिता में गहरी रुचि है, जिसके चलते वह लेखन और संवाद के माध्यम से समाज में नई सोच और विचारों का संचार करने का प्रयास करती हैं।