सफलता तक पहुंचने का रास्ता कभी आसान नहीं होता, और आदर्श पंवार इसकी जीती-जागती मिसाल हैं। 38वें राष्ट्रीय खेलों में 50 मीटर रिकर्व तीरंदाजी स्पर्धा में 360 में से 340 अंक अर्जित कर राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ने वाले आदर्श की सफलता महज उनकी मेहनत की कहानी नहीं, बल्कि हर चुनौती से लड़ने की जंग है।
7 फरवरी, 38वें राष्ट्रीय खेलों का दिन, उत्तराखंड के युवा तीरंदाज आदर्श पंवार के लिए जीत और संघर्ष दोनों का सबक लेकर आया। भारतीय राउंड तीरंदाजी में वह मात्र 0.5 अंकों के अंतर से ब्रॉन्ज मेडल से चूक गए। लेकिन आदर्श ने इस हार को चुनौति के रूप में लिया है, और बोले, हार नहीं मानूंगा !
2007 में आदर्श के पिता के असमय निधन के बाद, उन्होंने परिवार की सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर सहेज ली। खेतों की देखभाल, पार्ट-टाइम नौकरी और अपनी दुकान संभालने के साथ-साथ आदर्श पंवार ने सब्जी बेचकर अपनी पहली धनुष खरीदी। इन सभी कठिनाइयों के बावजूद, उन्होंने अपनी पढ़ाई और तीरंदाजी की ट्रेनिंग पर भी पूरा ध्यान दिया।परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ ढोते हुए, उन्होंने कभी अपनी मंजिल को नहीं छोड़ा।
स्कूल के दिनों में आदर्श खो-खो के मैदान में जोश से खेलते थे और उनकी मेहनत रंग लाई जब उनका खो-खो के लिए राष्ट्रीय स्तर पर चयन हुआ। हालांकि, कुछ कारणों से वे उस मौके का फायदा नहीं उठा पाए, लेकिन उनके मन में हमेशा यह सवाल था, “राष्ट्रीय स्तर पर खेलना कैसा होता है?” वहीं दसवीं कक्षा के बाद उनकी नजरें एक नए लक्ष्य की ओर मुड़ गईं। उस वक्त उन्होंने तीरंदाजी में अपनी दिलचस्पी को जगते देखा और यह नई दिशा उनके खेल जीवन का निर्णायक मोड़ साबित हुई।आदर्श की तीरंदाजी के प्रति रुचि की शुरुआत उनके दोस्त हिमांशु चौहान से हुई। हिमांशु ने आदर्श को इस खेल से परिचित कराया, और वहीं से आदर्श की तीरंदाजी में गहरी रुचि विकसित हुई। आदर्श के परिवार के सदस्य चाहते थे कि वह सरकारी नौकरी करें, न कि खेलों में समय बर्बाद करें। परिवार की यह सोच सामान्य थी, लेकिन आदर्श का सपना कुछ और था। उन्होंने न केवल परिवार की उम्मीदों का सम्मान किया, बल्कि अपनी खुद की राह चुनी।
यह कहानी केवल एक खेल की जीत नहीं, बल्कि उन चुनौतियों की जीत है जो जीवन में हर किसी को मिलती हैं। आदर्श की यह सफलता उन सभी के लिए प्रेरणा है, जो अपने हालात से हार मान लेते हैं। उन्होंने हमें यह सिखाया कि गरीबी या कठिनाइयाँ कभी भी किसी के सपनों को रोकने का कारण नहीं हो सकतीं।
संवाददाता
अदिति कंडवाल
अदिति कंडवाल दून विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य में एमए की छात्रा हैं। उन्हें साहित्य और पत्रकारिता में गहरी रुचि है, जिसके चलते वह लेखन और संवाद के माध्यम से समाज में नई सोच और विचारों का संचार करने का प्रयास करती हैं।

