उत्तर प्रदेश पुलिस की बहादुर जूडो खिलाड़ी अस्मिता की प्रेरणादायक यात्रा उन सपनों की गाथा है, जो लाखों लोगों को उम्मीद की रोशनी दिखाती है। 38वें राष्ट्रीय खेलों में 48 किग्रा वर्ग में गोल्ड मेडल जीतकर अस्मिता ने साबित कर दिया कि समर्पण और कड़ी मेहनत से सफलता हासिल की जा सकती है।
अस्मिता ने छठी कक्षा में जूडो खेलना शुरू किया था। वह कहती हैं, “जूडो ने मुझे मानसिक रूप से बहुत मज़बूत बनाया है।” उनके माता-पिता को केवल उनके मेडल्स के बारे में पता है, लेकिन उनके संघर्ष और चुनौतियों की गहराई शायद ही उन्हें मालूम हो।
हर सफलता की कहानी में मुश्किलें भी होती हैं। अस्मिता के सफर में भी कई अड़चनें आईं, खासकर वजन और आहार के मामले में। जूडो जैसे खेल में वजन बनाए रखना बेहद महत्वपूर्ण होता है। अस्मिता ने बताया, “मेरे लिए सही आहार और वजन को नियंत्रित करना सबसे बड़ी चुनौती थी। मैंने महीनों तक चीनी का सेवन नहीं किया, ताकि मैं खेल के लिए तैयार रह सकूं।”
प्रसिद्ध डायटिशियन इशी खोसला का कहना है, “खिलाड़ियों के लिए संतुलित आहार और शारीरिक आवश्यकताओं का ध्यान रखना बहुत महत्वपूर्ण होता है, खासकर उन खेलों में जहां वजन का सीधा संबंध प्रदर्शन से होता है।” यह वक्तव्य अस्मिता की कठिनाइयों और अनुशासन की भूमिका को उजागर करता है।
अस्मिता मानती हैं कि जूडो ने उन्हें अनुशासन सिखाया। उनका कहना है, “समय पर सोना, सही आहार लेना, और खेल पर ध्यान केंद्रित करना – ये सब मैंने जूडो से सीखा है।” उनका यह विचार कि “मार खाना गलत नहीं है, लेकिन फिर से उठ खड़ा होना बड़ी बात है,” उनके मजबूत इरादों को दर्शाता है।
अस्मिता फुटबॉल सुपरस्टार क्रिस्टियानो रोनाल्डो की बड़ी फैन हैं और उनके संवाद “इन माय माइंड, आईएम द बेस्ट” से प्रेरणा लेती हैं, जो उन्हें आत्मविश्वास बनाए रखने की ताकत देता है। अब अस्मिता का अगला सपना ओलंपिक में पदक जीतना है।
अस्मिता की कहानी यह संदेश देती है कि चाहे मुश्किलें कितनी भी बड़ी क्यों न हों, आत्मविश्वास, संघर्ष, और फिर से खड़े होने की क्षमता से हर हार को जीत में बदला जा सकता है।