हरिद्वार जिले के मंगलौर स्थित गांव गदरजूड़ा की 23 वर्षीय सोनिया, एक गरीब मजदूर की बेटी, ने 38वें राष्ट्रीय खेलों में फटे जूतों में 10 हजार मीटर दौड़ में कांस्य पदक जीतकर अपनी मेहनत और साहस का परचम लहराया है।
सोनिया का सफर आसान नहीं था, क्योंकि उन्हें कभी अच्छे जूते तक नहीं मिले थे। बावजूद इसके, उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और निरंतर संघर्ष से यह असाधारण सफलता प्राप्त की है।
बातचीत के दौरान सोनिया ने बताया की खेल की किट प्राप्त हुई, जिसमें सभी आवश्यक सामग्री शामिल थी, लेकिन एक बड़ी समस्या यह उत्पन्न हो गई कि उसके जूते का साइज (3 नंबर) उस समय उपलब्ध नहीं था। यह मुद्दा उस खिलाड़ी के लिए एक चुनौती बन गया, क्योंकि सही जूते के बिना खेल में प्रदर्शन में मुश्किल हो सकती थी।
लड़की की संघर्षपूर्ण कहानी और खेल विभाग से मिली किट में जूते के साइज की कमी के बारे में सुनकर, 38वें राष्ट्रीय खेलों के विशेष प्रमुख सचिव, श्री अमित सिन्हा ने तुरंत हस्तक्षेप किया। उन्होंने न केवल इस खिलाड़ी को उचित साइज के जूते दिलाने का वादा किया, बल्कि अन्य आवश्यक खेल सामग्री भी सुनिश्चित करने का निर्णय लिया।
विशेष प्रमुख सचिव खेल, श्री अमित सिन्हा ने कहा, “खिलाड़ियों को बिना किसी रुकावट के अपने खेल पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिलना चाहिए। उनके पास सही उपकरण होना बेहद महत्वपूर्ण है, ताकि वे अपनी पूरी क्षमता से प्रदर्शन कर सकें। जब हमें यह जानकारी मिली कि इस खिलाड़ी को उसके जूते का साइज नहीं मिल पाया, तो हमने तुरंत उसे सुनिश्चित किया कि उसे साइज 3 के जूते मिलेंगे।”
सोनिया का परिवार गदरजुड़ा गांव में रहता है, जहां उनके पिता एक मजदूर हैं और परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। सोनिया के पाँच भाई-बहन हैं, एक गरीब परिवार में जन्मी सोनिया को शुरूआत में एक एथलीट के लिए जरूरी आहार और सुविधाएं भी नहीं मिल पाती थीं। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी, और शुरूआत में उन्हें अपने सपनों को पूरा करने के लिए घरवालों का समर्थन नहीं मिला।
उनका कहना है, “जब मैं दौड़ने जाती थी, तो मेरे पास सही जूते नहीं होते थे। फिर भी मैं ने कभी हार नहीं मानी, क्योंकि मेरा सपना था कि मैं एक दिन देश का नाम रोशन करूंगी।”
सोनिया ने शुरुआती दिनों में काफी संघर्ष किया। उन्हें कभी ठीक से भोजन नहीं मिल पाता था, लेकिन उन्होंने अपनी कठिनाइयों को हमेशा अपनी ताकत बनाया। उनका विश्वास था कि अगर मेहनत की जाए, तो कोई भी बाधा नहीं रोक सकती।
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संवाददाता
देवांशी सिंह
देवांशी सिंह दून विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य की एमए की छात्रा हैं। उन्हें साहित्य और पत्रकारिता में गहरी रुचि है। अपनी रचनात्मकता और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से, देवांशी युवा साहित्यिक एवं पत्रकारिता क्षेत्र में एक उभरती हुई आवाज बनकर सामने आ रही हैं।