उत्तराखंड में कांग्रेस पार्टी के नेताओं की आपसी दूरी लोकसभा चुनावब 2014 में बड़ी हार का कारण बन सकती है। यहाँ दो कारणों की चर्चा की जाएगी: पहला, आपसी विवाद और दूसरा, पार्टी में एकता की कमी।
बात करते है कांग्रेस विधायक व पूर्व मंत्री प्रीतम सिंह व हरीश रावत के संबंधों की तो वो खुल कर 2022 के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में देखने को मिले ही गए थे । मंच पर एकसाथ न होना और खुल कर इन दूसरे पर आरोप लगाते देखे गए थे। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में प्रदेश के सभी कांग्रेस के बड़े नेताओं का एक मंच पर न होना।
यहीं नहीं कांग्रेस के नेता व हरीश रावत के नजदीकी माने जाने वाले पूर्व विधायक रणजीत सिंह रावत और हरीश रावत की खुले आम 2022 के चुनाव से पहले रामनगर सीट को लेकर आपसी बगावत पूरे उत्तराखंड ने सुनी और देखी ।
कांग्रेस के कद्दावर नेताओं पर बीजेपी की नजर
उत्तराखंड कांग्रेस का गृह क्लेश किसी से छिपा नहीं है। उत्तराखंड कांग्रेस नेताओं की आपसी कड़वाहट कांग्रेस हाईकमान को भी पता है।
बीते सालों में व इस वर्ष 2024 में भी कई कांग्रेस नेता व कार्यकर्ताओं ने भाजपा पर अपना विश्वास जताया और भाजपा पार्टी में गृह प्रवेश किया ।
अब उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों पर लोकसभा चुनाव 2024 को देखते हुए भाजपा को अपनी जीत का पूरा विश्वास है ।पर भाजपा इस जीत को ऐतिहासिक बनाने के लिए कांग्रेस के अंदर बड़े नेताओं की आपसी दूरी का पूरा फायदा उठाना चाहेगी ।
वही सूत्रों से मिली जानकारी से ऐसा होने में कम समय है। क्योंकि कहा जा रहा है कि कई कांग्रेस के बड़े नेता व विधायक लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा का दामन थाम सकते हैं। बस आपसी सहमति बनाने में समय लग रहा है ।
उत्तराखंड कांग्रेस के अंदर बढ़ती आपसी वर्चस्व की लड़ाई
पहले, आपसी वर्चस्व का मुद्दा अहम है। जो खुलकर देखने को मिल रहा है उत्तराखंड कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करण मेहरा और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बीच । मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश अध्यक्ष करण मेहरा का हरिद्वार लोकसभा सीट के लिए केवल चर्चा में आते ही कांग्रेस वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बीच आपसी वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई है। हरीश रावत अपने मन की इच्छा पहले ही हरिद्वार लोकसभा सीट से 2024 में लड़ने की जाता चुके है। ऐसे में लाजमी है कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कही न कही कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करण मेहरा के नाम से निराश हो।
कांग्रेस पार्टी में नेताओं के बीच आपसी विवाद ने चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित किया है। नेताओं की इस आपसी दूरी ने पार्टी के चुनावी प्रचार और उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। इसके परिणामस्वरूप, पार्टी ने चुनावी अभियान में संगठनात्मक और संदेशात्मक दोनों दृष्टियों से कमजोर प्रदर्शन किया है।
दूसरा, पार्टी में एकता की कमी भी एक मुख्य कारण हो सकती है। कांग्रेस में एकता की कमी नेताओं की चरित्रिक सहमति, नीतिगत विपरीतता और उद्देश्यों के विभिन्न धाराओं के बीच देखी जा सकती है। इसके परिणामस्वरूप, पार्टी एक साथ नहीं मिलकर चुनाव की दिशा और संगठन को एकत्र करने में सक्षम नहीं हुई है।
इस प्रकार, उत्तराखंड में कांग्रेस पार्टी के नेताओं की आपसी दूरी लोकसभा चुनाव में बड़ी हार का मुख्य कारण बन सकती है। इससे सीखने की बात है कि राजनीतिक पार्टियों को आपसी एकता और संगठनात्मक शक्ति को महत्व देना चाहिए, ताकि वे चुनावी प्रक्रिया में सफलता प्राप्त कर सकें।