उत्तराखंड की भूमि पर आयोजित 38वें राष्ट्रीय खेलों में देहरादून स्थित महाराणा प्रताप अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम में जूडो प्रतियोगिता का रोमांचक नजारा देखने को मिला। देशभर से आए प्रतिभाशाली खिलाड़ियों ने इस आयोजन को और भी विशेष बना दिया, लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित किया गुजरात से आए तीन खिलाड़ियों ने, जिनकी जड़ें दक्षिण अफ्रीका से जुड़ी हैं।
ये तीनों खिलाड़ी अब भारतीय नागरिक हैं और गर्व के साथ भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इनके पूर्वज दक्षिण अफ्रीका से आकर गुजरात में बस गए थे। इन खिलाड़ियों की कहानी को और भी खास बनाता है उनका जॉर्जियाई कोच लाशा किज़िलाशविली, जो जॉर्जिया से आकर गुजरात में जूडो की बारीकियां सिखाते हैं। लाशा की शिक्षण शैली जॉर्जियाई जूडो की विशिष्टता को दर्शाती है – संतुलन, तेज़ी और फेंक तकनीकों का अद्भुत मिश्रण।
तीनों खिलाड़ियों ने आज हुए जूडो के मुकाबले में शानदार प्रदर्शन किया और फाइनल में पहुंचकर अपनी दमदार खेल क्षमता का प्रदर्शन किया। मुकाबले के दौरान दर्शकों की साँसे थम गई थीं। रोहित और उनकी दोनों बहनों ने राष्ट्रीय खेलों में पदक जीतकर इतिहास रच दिया। रोहित ने स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाया, जबकि उनकी बहनों ने रजत पदक अपने नाम किया।
रोहित मजगुल का कहना है, “जॉर्जियाई जूडो शैली की सबसे बड़ी विशेषता इसकी त्वरित पकड़ और संतुलन पर जोर है। हमारे कोच ने हमें सिखाया कि किस तरह जॉर्जियाई शैली में शक्ति और चपलता का मेल करके विरोधी पर दबाव बनाया जाता है।” वहीं लाशा किज़िलाशविली का मानना है कि जूडो सिर्फ शारीरिक मुकाबला नहीं है, बल्कि इसमें रणनीति, मानसिक एकाग्रता और आत्मविश्वास की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उनकी कोचिंग ने भारतीय खिलाड़ियों में नई ऊर्जा का संचार किया है और उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी सफलता हासिल करने के लिए प्रेरित किया है।
दक्षिण अफ्रीकी जीन अपनी एथलेटिक क्षमताओं के लिए पहले से ही मशहूर हैं। इन खिलाड़ियों का संयम, कठोर परिश्रम और लाशा का मार्गदर्शन उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए पदक जीतने की ओर अग्रसर कर रहा है।
यह अद्वितीय संगम, दक्षिण अफ्रीकी जड़ों वाले भारतीय खिलाड़ी और जॉर्जियाई कोच का सहयोग – भारत के खेल क्षेत्र के भविष्य में नई ऊँचाइयाँ छूने की उम्मीद देता है।
आपको याद दिला दें, 1882 में जापान के प्रसिद्ध गुरू जिगोरो कानो द्वारा विकसित जूडो, एक सुरक्षित और प्रभावी शारीरिक शिक्षा तथा आत्मरक्षा की विधा है। फेंकने और ग्रेप्लिंग तकनीकों पर आधारित यह मार्शल आर्ट न केवल शारीरिक फिटनेस बढ़ाने में सहायक है, बल्कि मानसिक अनुशासन और खेल भावना को भी उजागर करता है। जूडो का मुख्य उद्देश्य न केवल अपने प्रतिद्वंद्वी को परास्त करना है, बल्कि आत्म-नियंत्रण, धैर्य और संयम का भी विकास करना है।