दिहाड़ी मजदूरी से चैंपियन सिल्वर मेडलिस्ट तक: सूरज पंवार और उनकी माँ की संघर्षपूर्ण कहानी

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उत्तराखंड के देहरादून शहर के 24 वर्षीय सूरज पंवार ने हाल ही में 38वें राष्ट्रीय खेलों में 20 किलोमीटर रेस वाक में रजत पदक जीतकर अपनी कड़ी मेहनत और संघर्ष को एक नई ऊंचाई दी है। लेकिन सूरज की यह सफलता सिर्फ उनकी खुद की मेहनत का परिणाम नहीं है, बल्कि यह उनकी माँ के अथक संघर्ष और बलिदान की कहानी भी है, जिन्होंने कठिन हालातों में भी अपने बेटे को सपने पूरे करने का हौंसला दिया।

सूरज का जीवन किसी प्रेरणा से कम नहीं है। जब वह केवल छह महीने के थे, तब उनके जीवन में एक बड़ा हादसा हुआ – उन्होंने अपने पिता को खो दिया। इसके बाद उनका परिवार आर्थिक तंगी से जूझने लगा, लेकिन सूरज की माँ ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने दिन-रात मेहनत की और सूरज और उनके भाइयों को एक बेहतर जीवन देने के लिए दिहाड़ी मजदूरी की। सूरज के शब्दों में, “जहाँ भी मैं आज हूं, यह सब मेरी माँ की बदौलत है।”

सूरज की माँ ने घर चलाने के लिए कई सालों तक दिहाड़ी मजदूरी की। वह अपने बच्चों के लिए किसी भी हालात में कुछ न कुछ करतीं ताकि सूरज को खेल में हिस्सा लेने का मौका मिल सके। सूरज बताते हैं कि उनके पास अच्छे जूते खरीदने के पैसे नहीं थे, फिर भी वह स्कूल के जूतों में ही दौड़ की तैयारी किया करते थे। आर्थिक तंगी के बावजूद उनकी माँ ने कभी उन्हें खेल से दूर नहीं किया, और हमेशा उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।

जब सूरज को खेलने के लिए पैसे की आवश्यकता होती थी, तब उनकी माँ किसी न किसी तरह से पैसे जुटाकर उन्हें ट्रेनिंग देने भेजतीं। यह संघर्ष सिर्फ आर्थिक नहीं था, बल्कि एक मानसिक संघर्ष भी था, जहां हर कदम पर चुनौतियां थीं, लेकिन सूरज की माँ ने कभी भी अपनी उम्मीदों को खत्म होने नहीं दिया।

सूरज का कहना है कि वह अपनी सफलता का श्रेय अपनी माँ को देते हैं, जिन्होंने कठिनाइयों के बावजूद उनके सपनों को साकार करने में उनकी मदद की। “मेरे लिए यह सिल्वर मेडल सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं है, बल्कि यह मेरी माँ के संघर्ष का प्रमाण है,” सूरज कहते हैं।

सूरज के संघर्ष और सफलता ने न केवल उन्हें प्रेरित किया, बल्कि उनके परिवार के दूसरे सदस्य, उनके भाई का बेटा तुषार पंवार भी खेलों में कदम रख चुका है और कई नेशनल मेडल जीत चुका है। सूरज की कहानी ने तुषार को भी प्रेरित किया, और अब वह भी अपनी मेहनत और संघर्ष से खेल की दुनिया में अपनी पहचान बना रहा है।

सूरज पंवार की यात्रा इस बात का प्रमाण है कि यदि इरादा मजबूत हो और समर्थन सही हो, तो किसी भी हालात में सफलता हासिल की जा सकती है। उनकी माँ ने जिस प्रकार से अपने बच्चों के लिए हर बाधा को पार किया, वही उनका असली साहस और संघर्ष है। यह कहानी एक प्रेरणा है, जो यह सिखाती है कि मुश्किलें चाहे जितनी बड़ी हों, मेहनत और प्यार के साथ कोई भी सपना साकार किया जा सकता है।

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संवाददाता

देवांशी सिंह

देवांशी सिंह दून विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य की एमए की छात्रा हैं। उन्हें साहित्य और पत्रकारिता में गहरी रुचि है। अपनी रचनात्मकता और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से, देवांशी युवा साहित्यिक एवं पत्रकारिता क्षेत्र में एक उभरती हुई आवाज बनकर सामने आ रही हैं।

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