लोकेश कुमार जी, महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज, जहाँ 38 वे राष्ट्रीय खेलों का आयोजन किया जा रहा है, में मुख्य कोच के रूप में कार्यरत हैं। आज कई बच्चों को खेल की दुनिया में सफलता की दिशा दिखा रहे हैं। हरिद्वार के छोटे से गाँव हरदौली के लोकेश कुमार का जीवन सफर एक सशक्त प्रेरणा बन चुका है। एक समय था जब उन्हें अपनी बुनियादी ज़रूरतों के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था, लेकिन आज वे भारतीय खेल जगत में नए चैंपियंस तैयार कर रहे हैं।
लोकेश कुमार जी ने अपनी खेल यात्रा की शुरुआत 800 मीटर दौड़ से की थी। वे 2008 में स्पोर्ट्स कॉलेज में कोच के रूप में कार्यरत हुए और तब से लगातार मेहनत कर रहे हैं। उनके लिए यह सफर कभी भी आसान नहीं था। उन्होंने बताया, “मेरे पिता किसान थे और हमारे घर का खर्चा खेती से ही चलता था। आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। जब घर की स्थिति ऐसी हो तो परेशानियां आना स्वाभाविक है, लेकिन हमें उन परेशानियों से लड़ना सीखना चाहिए।”
लोकेश जी के अनुसार, एक समय ऐसा भी था जब वे जूतों के लिए भी तरस जाते थे लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और मुश्किलों को अपने आत्मविश्वास और संघर्ष से मात दी। आज वह ऐसे कई बच्चों को सही दिशा दे रहे हैं, जो आर्थिक तंगी से जूझते हुए खेल के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं।
लोकेश कुमार जी को यह गर्व है कि उन्होंने कई बच्चों को सफलता की ऊँचाइयों तक पहुँचने में मदद की है। हाल ही में 38 वे राष्ट्रीय खेलों द्वारा आयोजित 10 किलोमीटर वाक रेस में रजत पदक जीतने वाली शालिनी का उदाहरण देते हुए लोकेश जी ने बताया, “डेढ़ साल पहले जब शालिनी मेरे पास ट्रेनिंग लेने आई थी, तो वह खेल के लिए पूरी तरह से अनफिट थी। लेकिन उसने कठिन परिश्रम किया और आज वह रजत पदक विजेता है।” यही नहीं, लोकेश जी ने साहिल मलिक का भी जिक्र किया, जो 38 वे राष्ट्रीय खेलों में 4×400 रिले मीटर में रजत पदक विजेता बने हैं। साहिल के पिता गांव में चक्की चला कर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं, लेकिन साहिल ने कभी हार नहीं मानी और आज वह एक चैंपियन बन चुका है।
लोकेश जी खेल विज्ञान के बारे में भी बात करते हैं, लोकेश कुमार का मानना है कि खेल विज्ञान की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। उनका कहना है, “खेल विज्ञान एक बहुत महत्वपूर्ण चीज़ है। अगर इसका सही तरीके से उपयोग न किया जाए, तो पदक नहीं जीते जा सकते। ट्रेनिंग भी विज्ञान पर ही आधारित होती है, और यही कारण है कि हम सही दिशा में काम करके चैंपियंस तैयार कर सकते हैं।”
लोकेश कुमार जी का जीवन यह साबित करता है कि अगर कोई व्यक्ति अपने संघर्षों को सहन कर, सही दिशा में मेहनत करे, तो किसी भी मुश्किल को पार करना संभव है। उनके द्वारा प्रशिक्षित खिलाड़ियों ने यह दिखाया है कि गरीबी या संघर्ष किसी भी खिलाड़ी के रास्ते में आड़े नहीं आ सकते, अगर उनके पास सही मार्गदर्शन हो और वे मेहनत करने के लिए तैयार हों। लोकेश जी का जीवन एक प्रेरणा है, जो यह साबित करता है कि कठिन परिस्थितियों में भी सपनों को पूरा किया जा सकता है, बशर्ते आत्मविश्वास और कड़ी मेहनत साथ हो।
संवाददाता
देवांशी सिंह
देवांशी सिंह दून विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य की एमए की छात्रा हैं। उन्हें साहित्य और पत्रकारिता में गहरी रुचि है। अपनी रचनात्मकता और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से, देवांशी युवा साहित्यिक एवं पत्रकारिता क्षेत्र में एक उभरती हुई आवाज बनकर सामने आ रही हैं।