सिर्फ 100 रुपये और सुरक्षा गार्ड पिता की बेटी: ज्योति यर्राजी की स्वर्ण पदक तक की प्रेरणादायक यात्रा

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38वें राष्ट्रीय खेलों के तहत आयोजित 100 मीटर हर्डल और 200 मीटर हर्डल में विशाखापट्टनम, आंध्र प्रदेश की 24 वर्षीय ज्योति यर्राजी ने स्वर्ण पदक जीतकर एक नई मिसाल कायम की। उनकी यह उपलब्धि सिर्फ खेल के मैदान में नहीं, बल्कि जीवन की कठिनाइयों को पार कर आने वाली एक सशक्त प्रेरणा भी बन गई है।

ज्योति ने खुद अपनी संघर्षपूर्ण कहानी साझा की, जिसमें उन्होंने अपनी गरीबी और पारिवारिक चुनौतियों के बावजूद खेल में सफलता हासिल की। उन्होंने बताया कि उनका परिवार आर्थिक रूप से कमजोर था और शिक्षा का स्तर भी बहुत नीचा था। उनके पिता, सूर्य नारायण, एक सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करते थे, और घर की स्थिति को देखते हुए किसी को भी यह विश्वास नहीं था कि खेल में करियर बनाना संभव होगा।

ज्योति ने खुलासा किया कि उनके परिवार के सदस्य खेलों के महत्व से अंजान थे और उनका मानना था कि एक लड़की को खेलों में हिस्सा लेना उचित नहीं होगा। इस वजह से शुरुआत में उन्हें परिवार का कोई समर्थन नहीं मिला। हालांकि, ज्योति का आत्मविश्वास और साहस उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहा।

जब वह सिलेक्शन के लिए हैदराबाद गईं, तो उनके पास सिर्फ 100 रुपये थे, जिससे उन्होंने अपना गुजारा किया क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति बहुत कठिन थी। लेकिन इन 100 रुपये के साथ भी, ज्योति ने न केवल अपने सफर की शुरुआत की, बल्कि खुद को साबित करने का भी फैसला किया। इस आर्थिक तंगी के बावजूद, उन्होंने खेल में अपनी पकड़ बनाई और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।

ज्योति की कहानी यह साबित करती है कि अगर मेहनत और संघर्ष का रास्ता अपनाया जाए, तो किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है, और आर्थिक तंगी या शिक्षा की कमी कभी भी सफलता के रास्ते में बाधा नहीं बन सकती। उनका यह संदेश देशभर के युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुका है कि आत्मविश्वास और कड़ी मेहनत से कोई भी सपना हकीकत में बदला जा सकता है।

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संवाददाता

देवांशी सिंह

देवांशी सिंह दून विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य की एमए की छात्रा हैं। उन्हें साहित्य और पत्रकारिता में गहरी रुचि है। अपनी रचनात्मकता और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से, देवांशी युवा साहित्यिक एवं पत्रकारिता क्षेत्र में एक उभरती हुई आवाज बनकर सामने आ रही हैं।

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