बहन के समर्थन से बने गोल्ड मेडलिस्ट, सुमित कुमार ने 38वें नेशनल गेम्स में 3000 मीटर स्टीपलचेज में जीता स्वर्ण
खिलाड़ी की जिंदगी हमेशा संघर्ष और मेहनत से भरी होती है, लेकिन जब किसी के पास एक प्रेरणादायक साथी हो, तो वह राह आसान हो जाती है। ऐसी ही एक कहानी है सुमित कुमार की, जिन्होंने 38वें नेशनल गेम्स के तहत आयोजित 3000 मीटर स्टीपलचेज इवेंट में स्वर्ण पदक जीतकर खुद को साबित किया। इस सफलता के पीछे उनकी मेहनत और समर्पण के साथ-साथ उनकी बहन शिल्पी का अपार समर्थन भी है, जिनके बिना यह सफर आसान नहीं होता।
सुमित कुमार, जो एक सामान्य परिवार से हैं, अपनी सफलता का श्रेय अपनी बहन को देते हैं। जिन्होंने न सिर्फ उन्हें मानसिक रूप से सहारा दिया, बल्कि आर्थिक रूप से भी उनका समर्थन किया। उन्होंने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा, “मेरी बहन शिल्पी का समर्थन मेरे लिए बहुत मायने रखता है। वह हमेशा मेरी प्रेरणा रही हैं। उन्होंने हर कदम पर मेरा साथ दिया चाहे वह आर्थिक हो या मानसिक और कभी भी मुझे हार मानने नहीं दिया। उनकी वजह से ही आज मैं यहाँ हूँ।”
सुमित का कहना है कि उनके लिए यह गर्व की बात है कि उनकी बड़ी बहन ने हमेशा उन्हें सही दिशा दिखाई और आर्थिक रूप से भी उनका पूरा समर्थन किया। “खिलाड़ी की ज़िंदगी में बहुत उतार-चढ़ाव आते हैं, लेकिन बहन ने हमेशा मेरा हौंसला बढ़ाया और मुझे प्रेरित किया। मेरी बहन ने मुझे कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि मुझे किसी चीज़ की कमी है। उसने अपनी तरफ से हर संभव मदद की और मुझे हमेशा प्रेरित किया। उसकी वजह से ही मैं आज यहां तक पहुंच पाया हूं।”
यह पदक जीतने के बाद सुमित के लिए सबसे बड़ी खुशी यही है कि उनकी मेहनत और समर्पण के साथ-साथ उनके परिवार की अपार मदद ने उन्हें यह उपलब्धि दिलाई। “मेरे लिए यह जीत केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि मेरे परिवार, खासकर मेरी बहन के लिए भी है। वह हर समय मेरे साथ रही और मुझे हर मुश्किल से बाहर निकाला,” सुमित ने अपने दिल की बात कही।
सुमित की यह जीत इस बात का उदाहरण है कि सही समर्थन, प्रेरणा और परिवार के प्यार से कोई भी खिलाड़ी अपने सपनों को हासिल कर सकता है। आज, सुमित कुमार 24 साल की उम्र में अपनी बहन के सहयोग से एक गोल्ड मेडलिस्ट बने हैं और उनकी यात्रा हर किसी के लिए प्रेरणा है।
फोटो साभार: पवन नेगी
संवाददाता
देवांशी सिंह
देवांशी सिंह दून विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य की एमए की छात्रा हैं। उन्हें साहित्य और पत्रकारिता में गहरी रुचि है। अपनी रचनात्मकता और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से, देवांशी युवा साहित्यिक एवं पत्रकारिता क्षेत्र में एक उभरती हुई आवाज बनकर सामने आ रही हैं।