गंभीर चोटों के बावजूद अडिग रहकर जूडो में जीता स्वर्ण पदक

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जितना मैं मेहनत करूंगा, उतना ही खुद को प्रेरित कर पाऊंगा, यह शब्द हैं पौड़ी गढ़वाल के जूडो खिलाड़ी सिद्धार्थ रावत के, जिन्होंने हाल ही में 38वें नेशनल गेम्स में -60 कि.ग्रा वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर उत्तराखंड और देश का नाम रोशन किया। इसके अलावा, उन्होंने सीनियर नेशनल चैंपियनशिप में भी स्वर्ण पदक हासिल किया। परंतु इस उपलब्धि तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था।

सिद्धार्थ ने 2010 में जूडो खेलना शुरू किया। नेताजी सुभाष नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स (NIS), पटियाला से उन्होंने अपने खेल करियर की नींव रखी। उनके लिए यह सफर उनके आदर्श सचिन सिंह रावत से प्रेरित होकर शुरू हुआ। लेकिन जैसे-जैसे वह आगे बढ़े, उन्होंने महसूस किया कि असली प्रेरणा किसी और में नहीं, बल्कि खुद के भीतर होती है।

हर खिलाड़ी की यात्रा में कठिनाइयाँ होती हैं, लेकिन सिद्धार्थ के लिए चोटें सबसे बड़ी चुनौती साबित हुईं। उनकी लोअर बैक और कंधे में गंभीर चोटें आईं। डॉक्टरों के मुताबिक, उनकी रीढ़ की डिस्क हल्की हिली हुई और थोड़ी टेढ़ी हो चुकी है। दर्द के बावजूद वे मैट पर उतरते रहे। चोट के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी और खुद को मानसिक रूप से मजबूत बनाए। “सबसे मुश्किल चीज़ मेरे लिए वज़न मैनेजमेंट रहा,” वे कहते हैं।
सिद्धार्थ का पहला अंतरराष्ट्रीय मुकाबला रूस में था, जहां उन्होंने रजत पदक जीता। इसके बाद थाईलैंड और लेबनान में आयोजित एशियन चैंपियनशिप में उन्होंने 5वीं रैंक हासिल की। लेकिन 2023 और 2024 उनके लिए निराशाजनक साबित हुए। इन दो वर्षों में कोई बड़ी उपलब्धि न मिलने से न केवल वे खुद हताश रहे, बल्कि उनके परिवार को भी संदेह होने लगा कि क्या उनका करियर आगे बढ़ पाएगा।

सिद्धार्थ वर्तमान में IIAS (Inspire Institute of Sports) से ट्रेनिंग ले रहे हैं, जो देश के शीर्ष राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एथलीट्स को प्रशिक्षित करने वाला संस्थान है। वे मानते हैं कि यहाँ परफॉर्मेंस का दबाव बहुत अधिक होता है, लेकिन वे हमेशा खुद को मानसिक रूप से प्रेरित रखने में विश्वास रखते हैं।
अब सिद्धार्थ की नज़रें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए पदक जीतने पर टिकी हैं। उनका मानना है कि संघर्ष और चोटें किसी भी खिलाड़ी के सफर का हिस्सा होती हैं, लेकिन असली जीत तब होती है जब हम इन मुश्किलों के बावजूद आगे बढ़ते रहते हैं

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संवाददाता

अदिति कंडवाल

अदिति कंडवाल दून विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य में एमए की छात्रा हैं। उन्हें साहित्य और पत्रकारिता में गहरी रुचि है, जिसके चलते वह लेखन और संवाद के माध्यम से समाज में नई सोच और विचारों का संचार करने का प्रयास करती हैं।

 

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