स्वर्ण पदक विजेता सोनल की कहानी, उनकी जुबानी: “थैंक यू पापा!”

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पिता के संघर्ष और समर्पण ने बनाई चैंपियन बेटी: सोनल पाटेल ने 38वें राष्ट्रीय खेलों में जीता स्वर्ण पदक

सुविधाओं की कमी कभी नहीं बन सकती बाधा, अगर इरादा हो मजबूत

महाराष्ट्र के छोटे से गाँव कोल्हापुर की रहने वाली सोनल पाटेल ने अपनी मेहनत और संघर्ष से खेल की दुनिया में नया कीर्तिमान स्थापित किया है। हाल ही में संपन्न हुए 38वें राष्ट्रीय खेलों में लॉन टेनिस की टीम स्पर्धा में सोनल और उनकी टीम ने स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया। यह सफलता सिर्फ सोनल के प्रयासों का परिणाम नहीं है, बल्कि इसमें उनके पिता के संघर्ष और समर्पण की भी अहम भूमिका रही है।

पिता का संघर्ष और बेटी के सपने

सोनल पाटेल की सफलता एक प्रेरक कहानी है, जिसमें एक पिता ने अपनी सीमित आय और मुश्किलों के बावजूद अपनी बेटी के सपनों को साकार करने के लिए किसी भी मुश्किल को अपने रास्ते में नहीं आने दिया। सोनल ने बताया कि उनका बचपन ऐसे गाँव में बीता जहाँ खेल की सुविधाएं न के बराबर थीं।

टेनिस खेल की शुरुआत में ही उन्हें अपने परिवार की वित्तीय स्थिति के कारण निराशा का सामना करना पड़ा। एक मध्यवर्गीय परिवार से होने के कारण उनकी सुविधाएं सीमित थीं, और यह उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन गई।

सोनल ने इस बारे में बात करते हुए कहा, “शुरुआत में मैं काफी निराश थी, क्योंकि हमारा परिवार आर्थिक रूप से मजबूत नहीं था। मैंने देखा कि मेरे पास वो सारी सुविधाएं नहीं थीं, जो बड़े खिलाड़ी आसानी से पा सकते थे। कभी-कभी ऐसा लगता था कि शायद मैं इस खेल को आगे नहीं बढ़ा पाऊँगी पर मेरे पिता ने हमेशा मेरा साहस बढ़ाया” उनके पिता ने कभी हार नहीं मानी और अपनी बेटी के लिए एक नया रास्ता चुना।

सोनल के पिता ने अपनी छोटी सी पौधों की नर्सरी से कमाई करके अपने घर में ही टेनिस कोर्ट बना दिया, ताकि उनकी बेटी बिना किसी रुकावट के अपने खेल की यात्रा जारी रख सके। यह दिखाता है कि अगर इरादा मजबूत हो और समर्पण में शक्ति हो, तो कोई भी बाहरी बाधा व्यक्ति के सपनों को साकार करने में आड़े नहीं आ सकती।

आर्थिक तंगी के बावजूद टूर्नामेंट में भेजा

सोनल ने यह भी बताया कि एक बार उन्हें एक महत्वपूर्ण टूर्नामेंट में भाग लेने का मौका मिला, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उनके लिए इस टूर्नामेंट में हिस्सा लेना एक बड़ी चुनौती बन गया। उनके पास पैसे की कमी थी, और उनका परिवार आर्थिक रूप से मजबूती से खड़ा नहीं था। फिर भी, सोनल के पिता ने किसी भी स्थिति में अपनी बेटी के सपनों को पूरा करने का निश्चय किया। उन्होंने कड़ी मेहनत करके अपनी आय से पैसे जुटाए और अपनी बेटी को उस टूर्नामेंट में भेजने के लिए पूरी तरह से समर्थन किया।

सोनल ने इस संघर्ष के बारे में बात करते हुए कहा, “वह समय मेरे लिए बहुत कठिन था, लेकिन मेरे पिता ने कभी भी हार नहीं मानी। हम आर्थिक रूप से मजबूत नहीं थे, लेकिन मेरे पिता ने हमेशा मुझे सपोर्ट किया। उन्होंने अपनी पूरी ताकत और संघर्ष से मेरी मदद की और मुझे उस टूर्नामेंट में भेजा, जो मेरे लिए बेहद महत्वपूर्ण था। आज जो भी मैं हूं, उसका पूरा श्रेय मेरे पिता को जाता है।”

सोनल ने भावुक होकर कहा कि मैं आज यहां तक सिर्फ अपने पापा की वज़ह से हूँ।  “थैंक यू पापा!

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संवाददाता

देवांशी सिंह

देवांशी सिंह दून विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य की एमए की छात्रा हैं। उन्हें साहित्य और पत्रकारिता में गहरी रुचि है। अपनी रचनात्मकता और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से, देवांशी युवा साहित्यिक एवं पत्रकारिता क्षेत्र में एक उभरती हुई आवाज बनकर सामने आ रही हैं।

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