“मां, मैंने चिप्स के पैकेट नहीं चुराए थे” 13 साल के बच्चे की आत्महत्या ने झकझोरा

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पश्चिम बंगाल: ‘मां, मैंने चोरी नहीं की’ — 13 साल के बच्चे की आत्महत्या ने झकझोरा

पश्चिम बंगाल के पंसकुरा इलाके में एक बेहद दुखद और दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जहां सातवीं कक्षा में पढ़ने वाले 13 वर्षीय छात्र कृष्णेंदु दास ने आत्महत्या कर ली। घटना ने न सिर्फ स्थानीय लोगों को बल्कि पूरे समाज को झकझोर दिया है। आत्महत्या से पहले छोड़ा गया बच्चे का सुसाइड नोट उसकी मासूमियत और अंदरूनी पीड़ा को उजागर करता है।

क्या है पूरा मामला?

कृष्णेंदु दास, बकुलदा हाई स्कूल में पढ़ता था। रविवार को उस पर गोसाईंबेर बाजार की एक मिठाई की दुकान से चिप्स के तीन पैकेट चुराने का आरोप लगा। यह दुकान एक सिविल वॉलेंटियर शुभांकर दीक्षित की थी। आरोप है कि शुभांकर की गैरहाजिरी में कृष्णेंदु ने दुकान से चिप्स उठाए।

जब शुभांकर ने उसे थोड़ी दूरी पर चिप्स के पैकेट के साथ देखा, तो वह उसके पीछे दौड़ा। पूछताछ में कृष्णेंदु ने तीनों पैकेट के बदले 20 रुपए दे दिए — यानी 5 रुपए प्रति पैकेट के हिसाब से। इसके बावजूद दुकानदार नहीं माना और पैसे वापस लेने के बहाने उसे दुकान पर बुलाकर वहां मारपीट की। यही नहीं, दुकानदार ने उसे लोगों के सामने माफी भी मांगने पर मजबूर किया।

मां की डांट बनी आखिरी चोट

जब यह बात कृष्णेंदु की मां को पता चली तो वह उसे फिर से उसी दुकान पर ले गईं और सार्वजनिक रूप से उसे डांटा। इस अपमान और अविश्वास ने कृष्णेंदु को अंदर से तोड़ दिया। घर लौटते ही उसने आत्महत्या की कोशिश की। गंभीर हालत में उसे तामलुक मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान गुरुवार को उसकी मौत हो गई।

सुसाइड नोट: मासूम चीख

कृष्णेंदु अपने पीछे जो सुसाइड नोट छोड़ गया, उसमें लिखा था:
“मां, मैंने चिप्स के पैकेट नहीं चुराए थे।”
यह वाक्य केवल शब्द नहीं, बल्कि उस मासूम की टूटती आत्मा की चीख है, जो शायद अपने सबसे करीबी से समझे जाने की उम्मीद कर रहा था।

जांच और प्रतिक्रिया

इस मामले को लेकर पुलिस ने जांच शुरू कर दी है। दुकानदार शुभांकर दीक्षित की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। सामाजिक संगठनों और बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता इस मामले को बेहद गंभीरता से ले रहे हैं।

समाज के लिए सवाल

यह घटना कई गंभीर सवाल उठाती है:

  • क्या किसी पर सिर्फ शक के आधार पर सार्वजनिक बेइज्जती और मारपीट जायज है?

  • क्या एक बच्चे की गलती पर उसे सजा देने से पहले समझाने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए?

  • जब अपने ही मां-बाप बच्चे पर विश्वास नहीं करते, तो वह किससे उम्मीद करे?

इस घटना ने समाज, स्कूल, परिवार और कानून व्यवस्था — सभी की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

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