संघर्ष की मिसाल: तल्हा फैयाज़ की अदम्य यात्रा

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कश्मीर की जुझारू बेटी तल्हा फैयाज़ ने महज दो साल जूडो खेलने के बाद 38वें नेशनल गेम्स में कांस्य पदक जीतकर सभी को प्रेरित किया है। यह जीत उनके संघर्ष, समर्पण, और कड़ी मेहनत की कहानी है, जो न सिर्फ खेल जगत, बल्कि समाज की उन सभी लड़कियों के लिए मिसाल है जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रही हैं।

तल्हा की यात्रा वुशो से शुरू हुई, जहाँ उन्होंने अनुशासन, आत्मविश्वास, और मानसिक दृढ़ता सीखी। लेकिन समाज के सवाल, “क्या एक लड़की ऐसे खेल में हिस्सा ले सकती है?” अक्सर उनका हौसला तोड़ने की कोशिश करते रहे। उनके पिता, एक ड्राइवर, आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद हमेशा उनका साथ देते रहे, यह सुनिश्चित करते हुए कि उनकी बेटी अपने सपनों का पीछा कर सके।

जब तल्हा ने विश्वविद्यालय में जूडो के प्रति रुचि दिखाई, तो उनके पिता चिंतित थे, लेकिन तल्हा ने उन्हें समझाया कि जूडो सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि आत्मरक्षा का भी माध्यम है। धीरे-धीरे तल्हा ने खेल की हर हार को अपनी सीख में बदलकर खुद को मजबूत बनाया। उन्होंने जूनियर नेशनल से लेकर सीनियर नेशनल तक कई चुनौतियों का सामना किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी।

तल्हा की सफलता में उनके कोच की भी अहम भूमिका रही, जिन्होंने उनकी काबिलियत को समझते हुए उन्हें सही मार्गदर्शन दिया। उत्तराखंड में आयोजित नेशनल गेम्स में कांस्य पदक जीतने के बाद तल्हा ने गर्व से कहा,

उत्तराखंड मेरे लिए लकी साबित हुआ। इस बार कांस्य आया है, लेकिन अगली बार, इंशाआल्लाह, सुनहरा पदक जीतूगी”

तल्हा फैयाज़ की यह कहानी संघर्ष और उम्मीद की प्रेरणा है। आर्थिक कठिनाइयों और सामाजिक धारणाओं को पीछे छोड़कर तल्हा ने साबित कर दिया है कि अगर आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प हो, तो कोई भी सपना असंभव नहीं होता।

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संवाददाता

अदिति कंडवाल

अदिति कंडवाल दून विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य में एमए की छात्रा हैं। उन्हें साहित्य और पत्रकारिता में गहरी रुचि है, जिसके चलते वह लेखन और संवाद के माध्यम से समाज में नई सोच और विचारों का संचार करने का प्रयास करती हैं।

 

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