चंपावत:
चंपावत उपचुनाव की सरगर्मी अपने जोरो शोर पर पहुंच चुकी है। उत्तराखंड कांग्रेस के सभी बड़े नेता नये सिरे से पार्टी को उठाने की कवायद में जुटे जरूर दिखाई दे रहे है। परन्तु विधानसभा चुनावों में पार्टी की करारी हार के बाद कमजोर मनोबल चंपावत उप चुनाव को रोचक नहीं बनने दे रहा है। पूर्व विधायक हेमेश खर्कवाल के मैदान से हटने के साथ ही ये तय हो गया था कि कांग्रेस इस जंग में बाजी पलटने की स्थिति में नहीं है। जबकि भाजपा विधानसभा चुनाव के प्रचंड बहुमत की ऊर्जा से लवरेज होकर मुख्यमंत्री व प्रत्याशी पुष्कर सिंह धामी की धूम मचा रही है। भाजपा के सभी नेता व कार्यकर्ता चंपावत में डेरा डाले हुए हैं।
चंपावत की कहानी उत्तराखंड के किसी भी मुख्यमंत्री के उपचुनाव से कुछ अलग कहानी पेश कर रही है। दरअसल, उत्तराखंड के अभी तक जितने भी मुख्यमंत्री बने या तो वे सांसद थे या फिर विधायक। पहले सीएम नित्यानन्द स्वामी, भगत सिंह कोश्यारी, रमेश पोखरियाल निशंक, त्रिवेंद्र सिंह रावत व पुष्कर सिंह धामी विधायक से सीएम बने। जबकि जनरल बीसी खंडूड़ी, विजय बहुगुणा , हरीश रावत सांसद से इस्तीफा दे उपचुनाव लड़े। इनमें तीरथ सिंह रावत मात्र चार महीने में ही हटा दिए गए। लिहाजा, उन्हें चुनाव नहीं लड़ना पड़ा।
प्रदेश का यह उपचुनाव थोड़ा अलग इसलिए भी माना जा रहा है कि सीएम पहले एक विधानसभा (खटीमा) चुनाव हार गए और यह भी पहली बार हुआ कि सीएम की हार के बाद भी भाजपा पूरा बहुमत ले आयी। यह भी पहली बार हुआ कि व्यक्तिगत चुनावी हार के बाद भी पार्टी हाईकमान ने दोबारा पुष्कर सिंह धामी पर ही विश्वास जता कई अन्य के मुख्यमंत्री बनने के सपनों पर पानी फेर दिया। सीएम धामी इसी चंपावत के राजनीतिक भंवर से निकलने की जी तोड़ कोशिश में जुटे है। खटीमा से मिले सबक के बाद भाजपा हाईकमान चंपावत में कोई ढिलाई छोड़ने के मूड में नहीं दिख रहा।
पार्टी के विघ्न संतोषियों पर कड़ी नजर रखते हुए चुनाव प्रचार की कमान स्थानीय नेताओं के ही कंधों पर डाली हुई है। चुनाव में सभी राजनीतिक दल सारे हथकंडे अपनाते हैं। चंपावत उप चुनाव में भी भाजपा कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। चंपावत के विकास के लिए आचार संहिता लागू होने के पहले 300 करोड़ की विकास कार्यों की घोषणा का जिक्र हर भाजपाई की जुबान पर है। इसके अलावा विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ जीत का जोश कांग्रेस के कमजोर मनोबल पर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है।
कांग्रेस पार्टी महंगाई, चारधाम यात्रा समेत भाजपा के बार बार सीएम बदलने की नीति को मुख्य मुद्दा बनाये हुए है। कांग्रेस के नेता अपने भाषणों में यह कहने से नहीं चूक रहे कि भाजपा पांच साल में तीन-तीन सीएम बदल देती है और सीएम धामी को भी बदल देगी। भाजपा आम मतदाताओं को यह समझाने की जुगत में लगी है कि इलाके के विकास के लिए सीएम चुनिए न कि विपक्ष का विधायक। साथ ही कांग्रेस की काट के लिए यह बात भी कही जा रही है कि पुष्कर सिंह धामी पीएम मोदी की पसन्द है, इसीलिए हार के बाद भी उन्हें ही पांच साल के लिए सीएम बनाया गया है। इलाके की कायलपल्ट हो जाएगी।
भाजपा चुनाव प्रचार के दौरान समान नागरिकता कानून, सत्यापन अभियान, घुसपैठिये की समस्या व कई जिलों में जनसंख्या में आ रहे बदलाव को भी प्रमुखता से उठा रही है। अन्य पर्वतीय जिलों की तरह चंपावत भी काफी पिछड़े इलाके में शुमार किया जाता है। ज़िला अस्पताल से सीएचसी 75 किलोमीटर दूर है। रोजगार समेत अन्य मूलभूत सुविधाओं का भी बुरा हाल है। इस सच को बूझते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपनी सभाओ में साफ तौर पर कह चुके हैं कि उनके द्वारा जो भी अश्वासन क्षेत्र की जनता को दिए गये है उन पर गहन अध्ययन किया गया है। पूर्व में भी जो घोषणाए हुई उन पर अमल किया गया है और नतीजे दिख रहे हैं। खटीमा से चंपावत तक के सफर में सीएम धामी को कई कडुवे-मीठे अनुभव हो चुके हैं। धामी चंपावत की जंग को जीतने की पुरजोर कोशिश में जुटे हुए हैं। भाजपा का दावा है कि धामी को चंपावत की जनता का 100 फीसद समर्थन मिलेगा।