खामोशी के पीछे युवा विधायकों का दर्द लगातार जीत के बाद भी मंत्री पद से दूर रहे

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उत्तराखंड की राजनीति का जवाब नहीं। कब कौन यहां पलटी मार जाए पता नहीं चलता। कब किसका दाव कहा पर लग जाये सब इसी जदोजहद में लगे रहते है। परन्तु भाजपा हो या कांग्रेस उत्तराखंड राज्य बनने के बाद उत्तराखंड की सत्ता में काबिज भाजपा हो या कांग्रेस की सरकारें सभी अपने हाईकमान के इशारों पर चलती आई है।  अगर हम बात करें 2002 से 2007 की कांग्रेस की एनडी तिवारी सरकार की तो उसके बाद ही शायद ऐसा हुआ हो कि कोई मजबूत मुख्यमंत्री प्रदेश को मिला हो और मुख्यमंत्री बदलने का दौर तो उत्तराखंड की पहली सरकार बनने से रहा है 2000- 2022 पूर्व मुख्यमंत्री स्वo नित्यानंद स्वामी फिर पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी , भाजपा सरकार 2007- 2012 मेजर जनरल भुवन चंद खंडूरी फिर डॉo रमेश पोखरियाल निशंक और एक बार फिर मेजर जनरल भुवन चंद खंडूरी , 2012-2017 पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा फिर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और 2017-2022 में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के बाद तीरथ सिंह रावत और फिर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी । 

उत्तराखंड 2022 के चुनाव में उत्तराखंड की राजनीति में इतिहास लिखने वाली भाजपा ने भले ही 47 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल कर दोबारा सत्ता में वापसी की हो । मुख्यमंत्री पुष्कर धामी की एक बार फिर सरकार बनने पर भाजपा के उन युवा विधायकों को बड़ी उम्मीदें थी जो दो से तीन बार लगातार अपनी विधानसभा से जीत हासिल कर आये थे। परंतु 23 मार्च को मुख्यमंत्री धामी के मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण में आस लगाए युवा भाजपा के कार्यकर्ता व लैंसडाउन विधायक महंत दिलीप रावत और देवप्रयाग से दूसरी बार रहे विधायक विनोद कंडारी को कही जगह नहीं मिल पाई । जब कि दोनों युवा विधायक अपने अपने स्तर से मंत्रिमंडल में जगह पाने की जुगत में लगे हुए थे। 

जब इस बिषय पर jagritimedia.com  ने देवप्रयाग विधायक विनोद कंडारी से प्रश्न करना चाह तो वे विधानसभा सत्र के दौरान कन्नी काटते नज़र आये तो वही लैंसडाउन से तीसरी बार विधायक रहे महंत दिलीप रावत भी हाईकमान के निर्णय से खुश नज़र आये। 

परंतु अंदर ही अंदर सुलगते सवालो के जवाब निकल ही आते है। पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के सुपुत्र सौरभ बहुगुणा ने 2017 में कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थमा था। जिसके बाद सौरभ बहुगुणा 2017 में सितारगंज से विधायक बने फिर वे 2022 एक बार विधायक बने दूसरी बार जीत हासिल कर उन्हें मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के मंत्रिमंडल में जगह मिल जाती है परंतु भाजपा के पुराने कार्यकर्ता व विधायकों को मंत्रिमंडल से वंचित रखा जाता है । भले ही खामोश युवा विधायक हाईकमान के निर्णय का हवाला देते हुए अपने अरमानो को दबा देते हो। पर ये भी किसी से छिपा नहीं है कि आज सौरभ बहुगुणा को मंत्रिमंडल में जगह मिलना उनके पिता के कद व पार्टी में दबदबा होने का एक कारण राह हो । परन्तु पार्टी व संगठन के अंदर ही अंदर युवाओं की अनदेखी की चर्चा दबे मुह होती ही रहती है।

हाला की अभी भाजपा की युवा पुष्कर सिंह धामी की सरकार के पांच साल है , जिसमे माना जा रहा है कि आने वाले समय मे कई विधायकों को सरकार में जिम्मेदारी दी जा सकती है। 

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