जाने गढ़वाली लोकोक्तियाँ और लोकोक्तियों में निहित नैतिक शिक्षा

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लोकोक्ति शब्द ‘लोक’ और ‘उक्ति’ शब्दों के मेल से बना है।लोकोक्ति, एक जनमानस की उक्ति होती है एवं पूरे जनमानस में लोकप्रिय होती है।लोकोक्तियाँ किसी भी भाषा एवं साहित्य का अभूतपूर्व अंग है। गढ़वाली बोलचाल में भी कई लोकोक्तियाँ हैं जो गढ़वाल के गांवों में जनमानस के बीच काफी प्रचलित हैं। इन्हें स्थानीय स्तर पर औखाणा, पखाणा, सूक्ति एवं कहावत भी कहते हैं। लोकोक्ति वक्ता के द्वारा विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों में अपने तथ्य को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करने के लिए बोली जाती है। हालाँकि लोकोक्ति वेद वचन तो नहीं पर वेद वचन से कम भी नहीं हैं। 

गोदांबरी देवी जी, गोपेश्वर से। वह कहतीं हैं :- मेरा गुस्यों की नौ तेरी साल, मेरी तरफां चून्दी पाल।

हिन्दी- मेरे मालिक की नौ हाथ चौड़ी तेरह हाथ लंबी गौशाला है मगर मेरे भाग्य में वह हिस्सा आया है जहां छत से पानी टपकता है।अर्थात: समय अनुकूल न होने के कारण या दुर्भाग्यवश बहुत साधन होने के बावजूद भी कई बार कुछ नहीं मिलता है।

 

लोकोक्ति पारस्परिक बातचीत में गागर में सागर भरने का काम करती हैं। एवं यह प्रभावशाली सम्प्रेशन का एक प्रमुख अवयव है। गढ़वाली भाषा में लोकोक्तियाँ दो प्रकार की होती हैं : 1. तुकांत, 2. अतुकांत

इस लेख में गढ़वाली जनमानस में लोकप्रिय कुछ तुकांत लोकोक्तियों का वर्णन किया जा रहा है जो आम जीवन के वार्तालाप में नैतिक शिक्षा देने का काम करती है।

गढवाली- अपणा नि देखण हाल, हैका देण स्वाल।
हिन्दी- अपने हालात नहीं देखने हैं और दूसरे को सलाह देनी है।
अर्थात हमें कभी भी उस मामले में सलाह नहीं देनी चाहिए जिस पर हम खुद अमल नहीं करते हों।

ग0- अति जौ बल खत्ति।
हि0- किसी भी चीज की अत्यधिकता उसके मूल्य को गिरा देती है।
अर्थात हमें हर काम में संतुलित व्यवहार करना चाहिए।

ग0- अड़ै-अड़ै फुंडू, पल्यै पल्यै खुंडू।
हि0– बच्चे अधिक डांटने/समझाने पर बिगड़ जाते हैं तथा हथियार अधिक धार देने पर कुंद हो जाते हैं।
अर्थात जिस प्रकार हमें हथियारो की धार अत्यधिक तेज नहीं करनी चाहिए उसी तरह बच्चों को अत्यधिक नहीं डांटना चाहिए।

ग0- औंदा कु आदर, जांदा कु सत्कार।
हि0- आते हुए का सम्मान एवं जाते हुए की सेवा।
अर्थात अपने घर में आने-जाने वाले अतिथियों की सेवा सम्मान करना चाहिए।

ग0- अफू चल्दा रीता, हौरुं पढोंदा गीता।
हि0- खुद खाली हाथ चलना और दूसरों को गीता पढ़ने का उपदेश देना।
अर्थात किसी मामले में खुद अमल किये बिना दूसरो को वह काम करने की सलाह नहीं देनी चाहिए।

ग0- उमर पौंछी साठ, अकल गे नाठ।
हि0- उम्र साठ साल पहुंच गई मगर अक्ल अभी भी कच्ची है।
अर्थात उम्र, बुद्धि एवं अनुभव के आधार पर बात, व्यवहार एवं काम करना चाहिए।

ग0- कम खाण सुखी राण।
हि0- कम खाना, सुखी रहना।
अर्थात अच्छे स्वास्थ्य के लिए भोजन कम मात्रा में ही खाना चाहिए।

ग0- कपड़ा न लत्ता, चला कलकत्ता।
हि0- बिना कपड़ों के ही कलकत्ता चलने के लिए तैयार रहना।
अर्थात बिना तैयारी एवं आवश्यक संसाधनों के किसी काम को नहीं करना चाहिए।

ग0- कभी तैला घाम, कभी सीला घाम।
हि0- धूप की आंच कभी तेज तो कभी धीमी।
अर्थात सुख दुःख जिंदगी का अहम हिस्सा है और हमें दोनों परिस्थितियों को समान भाव से स्वीकार करना चाहिए।

ग0- जै कि छै डौर सु नी चि घौर।
हि0- जिसकी थी डर वो नहीं है घर।
अर्थात बच्चों को हमेशा अभिभावक की निगरानी में रखना चाहिए अन्यथा उनके आवारा हो जाने की संभावना र रहती है।

ग0-जैन करी शरम वैका फूट्या करम।
हि0- जिसने की शर्म, उसके फूटे कर्म।
अर्थात रोजी रोटी कमाने के किसी भी तरह के काम करने में शर्म नहीं करनी चाहिए।

ग0- जनि देश, तनि भेष।
हि0- जैसा देश, वैसा भेष।
अर्थात हमें देश, काल एवं परिस्थिति के अनुसार अपना व्यवहार, बोलचाल एवं खान-पान रखना चाहिए।

ग0- जु नि धोलु अपणु मुख, वु क्या देलु हैका सुख।
हि0- जो अपना मुंह नहीं धोयेगा वो दूसरे को क्या सुख देगा।
अर्थात दूसरे की मदद करने से पहले हमें खुद की मदद करनी चाहिए।

ग0- ज्यादा खाण कु जोगी होंयां, पैली बासा भूखी रेंयां।
हि0- ज्यादा खाने को साधू बने पहली रात भूखे रहे।
अर्थात अधिक लाभ के लालच में पहली बार में ही हानि उठानी पड़ी, इसलिए ज्यादा लालच नहीं करना चाहिए।

ग0- जिंदगी का पड़ौ तीन, स्यौण वाळा की दशा हीन।
हि0- जिंदगी के तीन पड़ाव, सोने वाले की दशा हीन।
अर्थात जिंदगी के तीन पड़ाव होते हैं, बचपन, जवानी और बुढ़ापा। इनमें जो न संभला उनकी दुर्गति ही होती है। इसलिए समय पर संभल जाना चाहिए।

ग0- जेंका पेट लगी आग वे क्या चेणू साग
हि0- जिसको तेज भूख लगी हो वो दाल नहीं ढूंढता है।
अर्थात जिंदगी में विपरीत परिस्थितियों में धैर्य रखना चाहिए एवं अतिरिक्त सुविधा की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए।

ग0- झूठ लाण गंगा पार, जु चलि जौ दिन चार।
हि0- झूठ लगाना गंगा पार, जो चल जाए दिन चार।
अर्थात जहां लोग किसी बात को जानते हो वहां उसके संबंध में झूठ नहीं बोलना चाहिए, क्योंकि वो झूठ शीघ्र ही पकड़ा जाता है।

ग0- तू भी राणी मैं भी राणी कु कुटिली चैणा दाणी।
हि0- तू भी रानी, मैं भी रानी, कौन कूटेगा चने के दाने।
अर्थात हमें किसी भी काम को छोटा नहीं समझना चाहिए एवं हर काम को करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

ग0- तैलु खो अपणी मौ, सीलू खो बिराणी मौ।
हि0- गुस्सेबाज मनुष्य अपने परिवार का नुक्सान करता है जबकि शांत – सुशील मनुष्य दूसरे परिवार से भी अपने लिए लाभ लेता है।
अर्थात हमें हर बात में गुस्सा नहीं करना चाहिए इससे अपना ही नुक्सान होता है।

ग0- दाता बल कभी नि लूकी, समोदर बल कभी नि सूखी।
हि0- दान दाता कभी छुपता नहीं, समुद्र कभी नहीं सूखता।
अर्थात बिना किसी को बताए हुए अच्छे काम करते रहना चाहिए इसके बारे में औरों को स्वतः ही पता लग जाता है।

ग0- दीनी पौण, बूत्यूं लौण।
हि0- जैसा बीज बोएगा वैसा फल पायेगा।
अर्थात जीवन में हमें अच्छे फल हेतु अच्छा ही बीज बोना चाहिए।

ग0- दगड़यों का घौर पकोड़ी पाकी, सबुन चाखी, आग लगी सबुन तापी।
हि0- दोस्त के घर में पकौडी पकी तो सबने ही चखी मगर जब आग लगी तो तब भी सबने ही तापी मगर घर की आग बुझाई किसी ने नहीं।
अर्थात मतलबी दोस्त केवल सुख के साथी होते हैं, इसलिए इनसे दूर ही रहना चाहिए।

ग0- ना लग माच्छा गड्यले बाणी, भतगा भतगी तुन भी खाणी।
हि0- हे मछली, तू छोटे गदेरे की मछली की नकल मत कर वरना नुक्सान उठाना पड़ेगा।
अर्थात अपने सामथ्र्य के इतर दूसरे का अन्धा अनुकरण नही करना चाहिए क्योंकि इससे हानि उठानी पड़ सकती है।

ग0- नि करदू बल सत्यनारैणे कथा, अपणा ब्वेै- बाबू कू करदू लता।
हि0- सत्यनारायण की कथा न करता मगर अपने माता पिता के लिए कपड़े की व्यवस्था करता।
अर्थात माता पिता की सेवा करने में सत्यनारायण की कथा करने से भी ज्यादा पुण्य एवं सुकून प्राप्त होता है। नर सेवा ही नारायण सेवा है। इसलिए माता पिता की मौत के बाद विभिन्न तरह के कर्मकांड करने के बजाय जीते जी अधिक से अधिक सेवा करनी चाहिए।

ग0- परदेशी मुं रोंयां ना अपणी पत खोंयां ना।
हि0- परदेशी के सामने रोना नहीं अपनी मर्यादा खोना नहीं।
अर्थात हमें अपना दुःख एवं घर का भेद किसी अजनबी को नहीं बताना चाहिए, इससे अपनी ही बदनामी होती है।

ग0-बखरो भी ज्यू नि जौ, बाघ भी भुखु नि रौ।
हि0- बकरी भी न मरे और बाघ भी भूखा न रहे।
अर्थात सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। हमें जिंदगी में ऐसा काम करना चाहिए कि एक काम के बदले में दूसरे काम का नुकसान न हों ।

ग0- बांगी लाखड़ी कांधी नि लाणी, ढंगढ्यांदी ढुङ्गी, खुट्टू नि साणी।
हि0- टेढ़ी लकड़ी को कंधे पर नहीं रखना चाहिए, हिलते हुए पत्थर में पैर नहीं रखना चाहिए।
अर्थात जिंदगी में हर काम समझदारी से करना चाहिए ताकि पीछे पछताना न पड़े।

ग0- मन घोड़ा मा कर्म लोड़ा मा।
हि0- मन घोड़े में करम पत्थर में।
अर्थात हमें बातें बड़ी-बड़ी एवं काम निकृष्ट नहीं करना चाहिए।

ग0- मामा भाण्जा डेरा मुरौला, सामळ थौली अपणी अपणी खौला।
हि0- मामा भांजे का रिश्ता घर में व्यापार या यात्रा में खर्चा अपना अपना।
अर्थात हमें अपने व्यक्तिगत रिश्तों को व्यवसायिक रिश्तों से अलग रखना चाहिए, इससे दोनों तरह के रिश्तों की मर्यादा एवं विश्वास बना रहता है।

ग0- सौण मरि सासू, भादौ औणा आंसू।
हि0- सावन में मर गई सास भाद्रपद में आये आंसू।
अर्थात अपनो के मरने का दुख का पछतावा समय पर करना चाहिए या फिर झूठा दिखावा नहीं करना चाहिए।

ग0- सुणन सब की करण अपण मन की।
हि0- सुनना सब की करना अपने मन की।
अर्थात किसी भी काम को करते समय हमें सबकी राय सुननी चाहिए मगर अंतिम फैसला अपनी बुद्धि एवं विवेक से ही लेना चाहिए।

ग0- सुप्पा वाळा सौजण, चळना वाळा त्यागण।
हि0- सुप्पे वाले को पकड़िए, चलनी वाल को छोड़िए।
अर्थात विश्वसनीय को हमेशा साथ रखना चाहिए और धोखेबाज को त्याग देना चाहिए।

ग0- सपूत तें क्या सांजण, कपूत तें क्या पांजण।
हि0- सुपुत्र को क्या धन संचय करें एवं कुपु़त्र को क्या धन संचय करें ।
अर्थात सुपु़त्र के लिए धन संचय नहीं करना चाहिए क्योंकि वो अपनी योग्यता से कमा ही लेगा, और कुपुत्र के लिए भी धन संचय नही करना चाहिए क्यांे अगर वो ढंग से काम नहीं करेंगा तो घर का संचित धन भी बर्बाद कर लेगा।

ग0- रूप्या गण्न सौ बार, मनखि जांचण एक बार।
हि0-रूपयों की गिनती कई बार करो, मनुष्य की परख एक ही बार करो।
अर्थात एक बार धोखा देने वाले मनुष्य पर दोबारा भरोसा नहीं करना चाहिए।

ग0- हडगू खाण चबैक, पैणू खाण जबकैक।
हि0- हड्डी को चबाकर खाना चाहिए और दूसरों की दी हुई चीज देखकर खानी चाहिए।
अर्थात अजनबियों से लेन-देन एवं खान-पान के संबंध बहुत सोच समझकर बनाना चाहिए।

विशेष- उपरोक्त गढ़वाळी लोकोक्तियां आम जनमानस के साथ सामान्य वार्तालाप के दौरान सुनकर संग्रहीत की गई हैं।

लेखक

दर्शन सिंह नेगी

लेखक, राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय गोपेश्वर चमोली, उत्तराखंड में सहायक प्रोफेसर (अंग्रेजी) के पद पर कार्यरत हैं।दर्शन सिंह नेगी जी  की पढ़ाई-लिखाई बारहवीं तक जनपद चमोली के कुमेड़ा गांव में हुई। लेखक शौकिया तौर पर बुजुर्ग़ लोगों से वार्तालाप करते रहते हैं। गांव में वृद्ध माताएं अक्सर हर बात में कहावतों के माध्यम से ही वार्तालाप करती थी। वर्तमान में आम जन मानस के वार्तालाप से इन सुन्दर कहावतों का कहना – सुनना प्रायः कम होता जा रहा है। इसलिए लेखक ने इन औखाणों को संग्रहीत करने का मन बनाया जिससे इनका अस्तित्व बना रहे। 

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